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१स्थाना
ध्ययने
उपक्रमवर्णन.
श्रीस्था
17 अने लोकोत्तररूप चे भेदमा परम गुरुए रचित होवाची सूत्र, अर्थ अने उभयात्मक त्रण प्रकाररूप लोकोतर आगममां आनो। नाङ्गसूत्र समवतार थाय छे. तथा चाहसानुवाद जीवाणण्णत्तणओ, जीवगुणे बोहभावओ णाणे । लोगुत्तरसुत्तत्थो-भयागमे तस्स भावाओ ॥१५॥ ॥८॥
__आ गाथानो भावार्थ उपर कहेल छे. लोकोत्तर आगम पण आत्मागम, अनंतरागम अने परंपरागमना भेदी त्रण प्रकारे छे. तेमां अर्थथी तीर्थकरो, गणधरो अने तेना शिष्योनी अपेक्षाए अने मूत्रथी गणधरो, तेना शिष्यो अने शिष्योना शिष्योनी अपेक्षा करीने क्रमशः आत्मागम, अनंतरागम अने परंपरागमने विषे आ अध्ययननो अवतार थाय छे. संख्याप्रमाण अन्यत्र (अनुयोग द्वारमा) विस्तृत कहेल* छे तेमां आ अध्ययननो परिमाण (सातमी) संख्यामां अवतार थाय छे. तेमां पण कालिकश्रुत अने दष्टिवादश्रुत परिमाणरूप वे प्रकारमा ए कालिकश्रुत होवाथी कालिकश्रुत परिमाण संख्यामां अने तेमां पण शब्दनी अपेक्षाए संख्यात अक्षर, पदादि स्वरूपवडे संख्यातपरिमाणमा अवतरे छे तथा पर्यायनी अपेक्षाए आगम अनंतागम पर्यायरूप होवाथी अनंतपरिमाणात्मक संख्यामां अवतरे छे. तेमज कयु छ के-'अगंना गमा अणंता पजवा' इत्यादि.
४. वक्तव्यता. वक्तव्यता १ स्वसमय, २ परसमय अने ३ स्वपरसमयना भेदथी त्रण प्रकारनी छे. तेमा आ अध्ययन स्वसमय वक्तव्य. * १. नाम, २ स्थापना, ३ द्रव्य, ४ क्षेत्र, ५ काल, ६ उपमा, ७ परिमाण अने ८ भाव ए आठ प्रकारे संख्सप्रमाण कहेल छे.
AdSTTESENTS
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