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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyarmandie श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥६ ॥ WORXXXXXXXXXXXXXXXXXXMASK ईरेइ विसेसेण व, खिवइ कम्मा गमयइ सिवं वा । गच्छइ अतेण वीरो,स महं वीरो महावीरो। ११४ ||१ स्थानात्रण भुवनमां यश प्रसिद्ध होवाथी महायशवाळा अथवा कषायादि वैरीना सैन्यना पराजयथी विक्रांत-पराक्रमवाळा ते वीर ध्ययन (११३) ११४ मी गाथानो भावार्थ कहेवायेले छे. आ अवसर्पिणीमां चोवीश तीर्थकरोने विषे छल्ला तीर्थकर, सिद्ध-कृतार्थ स्कंधविशेष थया, बुद्ध-केवलज्ञानवडे जाणवा योग्य( पदार्थ )ने जाणनार, मुक्त-कर्मथी मुकायेला, 'यावत् ' शब्दथी ' अंतकडे ' जेणे स्य एकत्वम् भवनो अंत कर्यो छे ते अंतकृत, 'परिनिब्बुडे' परिनिर्वृत-कर्मकृत विकारना विरहथी शांत थयेला, शुं कहेलं (प्राप्त) थाय छे ? ४५२-५६ 'सव्वदुक्खप्पहीणे '-शरीरादिना सर्वे दुःखो जेना नाश थया छे ते सर्वदुःखप्रक्षीण अथवा पहीण. सर्व ठेकाणे बहुव्रीही सूत्राणि समासमां तांतनो जे परनिपात छे ते अहिताग्न्यादि गणथी थाय छे. अहिं तीर्थंकरोने विषे महावीरनु ज मोक्षगमनमा एकपणुं छे पण ऋषभादि जिनोनु एकपणुं नथी, कारण के दश हजार वगेरे मुनिओना परिवारवडे तेओर्नु सिद्धपणुं थयेलुं छे.कडं छे के| एगो भगवं वीरो, तेत्तीसाएँ सह निव्वुओ पासो । छत्तीसएहिं पंचहि,सएहिं नेमी उ सिद्धि गओ ॥११५४ एकाकी भगवान् महावीर. तेत्रीश मुनिओनी साथे पार्श्वनाथ सिद्ध थया अने पांचसो छत्रीस मुनिओनी साथे नेमीश्वर भगवान् मोक्ष गया (११५) इत्यादि । (सू० ५३) वीर एकाकी मोक्ष पाम्या ए कडं. सिद्धिक्षेत्रनी नजीकमां अनुत्तर १. टीकामा 'त्ति ' शब्द लेवाची अहि भाष्यमां आ प्रमाणे संबंध छे. २. बाकीना तीर्थंकरोतुं वृत्तांत आवश्यकनियुक्ति वगेरे शास्त्रथी जाणी लेवु.. xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020691
Book TitleSthanang Sutram Sanuvadasya
Original Sutra AuthorSudharmaswami
AuthorAbhaydevsuri
PublisherAbhaydevsuri
Publication Year
Total Pages377
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size19 MB
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