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सिद्ध थाय छे. एम भृतभावरूप समीप संबंधवडे तीर्थादि भेदथी पंदर प्रकारना अनंतरसिद्धोनी वर्गणार्नु एकपणुं कडं. हवे परंपरसिद्धोनी वर्गणा कहे छः-त्यां "अपढमसमयसिद्धाणम्" इत्यादि १३ सूत्रो जाणवा. जे प्रथम समयमा नहि सिद्ध थयेला ते अप्रथमसमयसिदो-सिदपणाना बीजा समयमां वतनारा तेओनी वर्गणा एक छे. एवी रीते यावत् शब्दथी "दुसमयसिद्धाणं तिचउपंचछसत्तट्ठनवदसंसखेजासंखेजसमयसिद्धाण" मिति एम जाणवू. तेमां सिद्धपणाना त्रण समयादिने विषे द्विसमयसिद्धादि कहेवाय छे, अथवा सामान्यथी अप्रथमसमयसिद्ध नामविशेषथी द्विसमयसिद्र नाम कहेवाय छे. आ कारणथी तेओनी वर्गणा एक छे. कोई स्थळे 'पढमसमयसिद्धाणं 'ति एवो पाठ छे. त्यां अनंतरसमयसिद्ध अने परंपरसमयसिद्ध रूप भेद नहि करीने प्रथमसमयसिद्धो ज अनंतरसमयसिद्धो छे एवी व्याख्यादि करवी. द्विसमयादिसिद्धो तो जेम श्रुतमा छे तेम ज कहेवा.
अहिंथी द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भावनो आश्रय करीने पुद्गलनी वर्गणाना एकपणानो विचार कराय छे-'एगा परमे'त्यादि जे पूरण, गलन स्वभाववाला छ ते पुद्गलो, ते स्कंधो पण होय माटे कंडक विशेष कहे छे-परमाणुओ-प्रदेश रहित एवा जे पुद्गलो छ तेओनी वर्गणा एक छे. एवं शब्दथी 'दुपरासेयाणं खंधाणं, तिचउपंचछसत्तट्टनवदससंखेजपएसियाणं असंखजपएसियाणमिति-एम जाणवू, द्रव्यथी पुद्गलनी विचारणा करी. हवे द्रव्य पछी क्षेत्रथी विचाराय छ-'एगा एगपएसे 'त्यादि-एक प्रदेशमा क्षेत्रने अवगाहीने रहेला पुद्गलो ते एकप्रदेशावगाढ कहेवाय छे. तेओनी वर्गणा एक छे अने ते परमाणु वगेरे अनंत प्रदेशवाळा स्कंधो पर्यंत होय छे. द्रव्यना परिणामर्नु अचिंत्यपणु होवाथी जेम
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