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परि० २५]
ज्वालामालीनीमन्त्रस्तोत्रम् ग्राहय ग्राहय, अचेलय अचेलय आवेशय आवेशय इम्यूँ ज्वालामालिनि ! ह्रीं क्ली लूँ ट्राँ द्रीं ज्वल ज्वल र र र र र र रां प्रज्वल प्रज्वल, हूँ प्रज्वल प्रज्वल, धगधगधू. मान्धकारिणि ! ज्वल ज्वल, ज्वलितशिखे ! देवग्रहान् दह दह, गन्धर्वग्रहान् दह दह, यक्षग्रहान् दह दह, भूतग्रहान् दह दह, ब्रह्मराक्षसग्रहान् दह दह, व्यन्तरग्रहान् दह दह, नागग्रहान् दह दह, सर्वदुष्टग्रहान् दह दह, शतकोटिदैवतान् दह दह, सहस्रकोटिपिशाचराजान दह दह, घे घे स्फोटय स्फोटय, मारय मारय, दहनाक्षि! प्रलय प्रलय, धगधगितमुखे ! ज्वालामालिनि ! हाँ ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः सर्वग्रहहृदयं दह दह, पच पच, छिन्द छिन्द, भिन्धि भिन्धि हः हः हाः हाः हेः हेः हुं फट् फट् घे घे क्ष्म्यै झाँ ड्री , श्री क्षः स्तम्भय स्तम्भय, हा पूर्व बन्धय बन्धय, दक्षिणं बन्धय बन्धय, पश्चिमं बन्धय बन्धय, उत्तरं बन्धय बन्धय, भy भ्राँ भी यूँ भी भ्रः ताडय ताडय, मयं माँ श्री मम्रो नः नेत्रे यः स्फोटय स्फोटय. दर्शय दर्शय, इम्यूँ प्रॉ प्री | श्री प्रः प्रेषय प्रेषय, मलयूँ ब्राँ घी यूँ ौ ब्रः जठरं भेदय मेदय, इम्ल्यू झाँ झी झं झों झः मुष्टिबन्धेन बन्धय बन्धय, म्ल्यू खाँ खी खू खाँ खः ग्रीवां भञ्जय भञ्जय, छम्ल्यूँ छाँ छीं छू छौँ छुः अन्तराणि छेदय छेदय, ठम्ल्यू ट्रां ह्रीं हूँ ,ौँ ठूः महाविद्यापाषाणास्त्रैः हन हन, म्ल्यूँ ब्राँ ब्रीं क्रू बाँ व्रः समुद्रे ! जम्भय जृम्भय, अाँ झः घाँ डॉ घ्रः सर्वडाकिनीः मर्दय मर्दय, सर्वयोगिनीः तर्जय तर्जय, सर्वशत्रून् ग्रस ग्रस, खं खं खं खं खं खं खादय खादय, सर्वदैत्यान् विध्वंसय विध्वंसय सर्वमृत्यून् नाशय, नाशय, सर्वोपद्रवं महाभयं स्तम्भय स्तम्भय, दह २ पच २ मथ २ ययः २ धम २ धरू २ खरू २ खगरावणसुविद्या घातय२ पातय २ सच्चन्द्रहासशस्त्रेण छेदय २ मेदय२ झरू २ छरू२ हरू २ फट् २ घेः हाँ हाँ आँ क्रीँ क्ष्वीं ह्रीं क्लीं ब्लूँ द्रां द्रीं क्राँ क्षी क्षीं क्षीं क्षीं ज्वालामालिनी आज्ञापयति स्वाहा ॥
इति सर्वरोगहरस्तोत्रम् ॥
श्रीमायावीजस्तोत्रम् । सुवर्णवर्ण लयमध्यसिद्धमधीश्वरं भास्वरभानुरूपम् । खण्डेन्दुबिन्दुस्फुटनादशोभं त्वां शक्तिबीजं प्रमनाः प्रणौमि ॥१॥ ह्रींकारमेकाक्षरमादिरूपं त्रैलोक्यवर्ण परमेष्ठिबीजम् । मायाक्षरं कामदमादिमन्त्रं तज्ज्ञाः स्तुवन्तीश ! भवन्तमित्थम् ॥२॥ शैक्षः सुशिक्षा सुगुरोरवाप्य शुचिर्वशी धीरमनाश्च मौनी।
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