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अद्भुतपद्मावतीकल्पे
[प्रकरणम् ६॥ वच्छुकारशब्देन देवि! पात्रेऽवतारय अवतारय भारसहस्रङ्खलाबन्धेनात्मपादतले क्षेपय क्षेपय लोलय लोलय धर्मय धर्मय चालय चालय क्षोभय क्षोभय आँ जाँ ह्रींकाररूपे! देवि! श्रीमति ! पद्मावति ! ऐक्लैंकारसबले । घोलय घोलय दोलय दोलय उच्छालय उच्छालय लोटय लोटय वज्रमयसूच्या नेत्राणि स्फोटय स्फोटय अङ्कशेनान्तराले सहस्रधा त्रोटय त्रोटय नागपाशेन सर्वाङ्गं मोटय मोटय भञ्जय भञ्जय ॐ ज्वालाजिह्वाकराले ! ररररर मूर्ते ! सर्वाङ्ग दह दह सर्वधातून क्षोभतां नय नय परमुद्रां प्रोटय त्रोटय आत्ममुद्रां देहि देहि हसौंकारेण देवि! मनोवाञ्छितं कार्य कुरु कुरु, डाकिनीजाकिनीकन्दकुद्दालिनि ! राकिनी-लाकिनी-मानमर्दनि ! हाकिनीजाकिनीकुलोच्छेदिनि ! ह्रीं जय जय ॥
यथोक्तमन्त्रः। द्विकचान्तरातहादिमझाद्यदिशिरकहकूटयुताः।
ॐ अव्यक्ताः क्रमशः स्थाप्या दिगवर्गयन्त्रेऽथ ॥ तत्परितो वह्निपुरं ह्रींकोमाद्यन्तरेखया वेश्यम् ।
पतत्सकटिकनिहितं दोषच्छेदाय हूतये मन्त्रान् ॥ मन्त्र:
ॐ नमो रुद्राय वानरराजाय हन हन दह दह मथ मथ बन्ध बन्ध भूतल भूतल ह्रीं हूँ हूँ हूँ हे हे हे ह ह काटय काटय मद मद् मोचय मोचय अबन्धप्रहे चक्रे ! चाटुवास्वले वाहर वाहर स्वाहा । मन्त्रितमालाया दोषाकृष्टिः । अथवा
सुदर्शनतो मन्त्राद् विधातु चित्तमनुकृत्यम् ।
येन स्मरणविधिना कृत्याकृत्यं हि हस्तगतम् ॥ हीहोरीसणरीसो अदमदपुरिसो डगमगचरितो। उठी दक्षिणदिशाई महादिव किलिकिलिशब्दं झंकाररूपि अहमदचक्रि छिन्नि मदासणि छिन्नि अहमदसामिणि छिन्नि छिन्नि, कावाडंकी छिन्नि छिन्नि होही होरी सणसो विसनासण हरि च्छिन्नि सुदरिसण ॥
त्रिसन्ध्यमाराध्य सुरक्तपुष्पैः सप्तैव सप्तैव दिने दिने (?) यावद् दिनानि भवन्ति भवन्ति सप्त सिद्धो भवेत् सर्वकार्यकरस्तथायम् ॥ इति श्रीश्वेताम्बरचक्रचूडामणिश्रीयशोभद्रोपाध्यायशिष्यचन्द्रप्रकाशितेऽद्भुतपद्मावतीकल्पे षष्ठं दोषलक्षणं
समाप्तम् ॥६॥
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