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१३२ | शावर तन्त्र शास्त्र
मन्त्र—"गुरु सत्य विस्मिल्लाह का पूज्योमा आवनकार आदि
गुरु सृष्टि करतार वेद वहर तारांहि एकी आइ युग चारि तीन लोक वेद चारि पाँचों पांडव छव मारग सात समुद्र आठ वसु नव ग्रह दश रावण ग्यारह रुद्र बारह राशि तेरह मोल चौदह शोक पन्द्रह तिथि चारि खानि चारि वानि पाँच भूत चौरासी आत्मा लाषित अयानि अष्ट कुली नाग तैतीस कोटि देवता आकाश पाताल मृत्यु लोक रात दिन पहर घरी दण्ड पल विपल महारथ साषिधरभेहौ अब जो कछु फलाने के पीरा देव दानव भूत प्रेत राखी सुजानु विनानु किताकराषादितावा क्षागाठिमुठिरषणी मुखणी विलनी फोठौरीगद्वहीनी नाईक षोलाइ अधौगीकरण मूलवायु सूलुण सुरू ननहरू वागडहरू वाजगरहू कर रक्तपीत मूत्र कुछ डाढारह प्रमेह गोला प्लीहा नहरूआ अहोगा सोगा अर्धशीशी कुटी लुती बुवारी मिरगी कमलवांड हंडी आनुवावुहयेलगडक्र, वायु चोटफेट रिताकिताला पालगायाषर पितीलंघा उलंघा बाटघाट बाहर निसार पसार साँझ सकार कौनहु प्रकार होइ हाड उदवार चामनाडी अर्द्ध अंग जहारूसी दोहाइ सलेमान पैगम्बर की तुरन्त विलाही षीन जाही नातरु सवा लाख पैगम्बर की वज्रथाप नवनाथ चौराशी सिद्धि के सराप शेषसरपूदी अहि आपीर मनेरी की शक्ति बाबा आदम की भक्ति जरिभस्म होइ जाय जाहि निहिनिषद्ध जाहि जाइ पिंड कुशल दोष फिटु फिटु स्वाहा।"
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