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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना १. "प्रमाणप्रमेयसंशयप्रयोजनदृष्टान्तसिद्धान्तावयवतर्कनिर्णयवादजल्पवितण्डाहेत्वाभासच्छलजातिनिग्रहस्थानानां तत्त्वज्ञानाम्निःश्रेयसाधिगमः ।" [न्यायसू० १।१।१] यह सूत्र नैयायिकशासनके पूर्वपक्षमें नैयायिकाभिमत सामग्रीको प्रस्तुत करनेके ध्येयसे उद्धृत किया गया है। २. "दुःखजन्मप्रवृत्तिदोषमिथ्याज्ञानानामुत्तरोत्तरापाये तदन्तराभावादपवर्गः।" [न्यायसू० १।१।२] यह सूत्र वैशेषिकाभिमत मोक्षके स्वरूपका प्रतिपादन करते हुए वैशेषिकशासनके पूर्वपक्षमें उद्धृत किया गया है। ३. “युगपज्ज्ञानानुत्पत्तिर्मनसो लिङ्गम् ।" [न्यायसू० १११११६ ] यह सूत्र वैशेषिक दर्शनके समवाय सिद्धान्तका निरसन करने के प्रसंगमें उद्धृत किया गया है। ४. “यसिद्धावन्यप्रकरणसिद्धिः सोऽधिकरणसिद्धान्तः ।" [न्यायसू० १।१।३० ] यह सूत्र वैशेषिकशासनमें ईश्वरकर्तृत्वका विचार करते समय प्रसंगवश अधिकरणसिद्धान्त के स्वरूपको द्योतित करनेके लिए उद्धृत किया गया है। उपर्युक्त चारों ही सूत्रोंके साथ न तो ग्रन्थका नाम आया है न कर्ताका । [१०] सौन्दरनन्द और सत्यशासन-परीक्षा .सौन्दरनन्द महाकाव्य बौद्धदर्शन तथा संस्कृत-साहित्यका एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्य है। साहित्यको रस और अलंकारपूर्ण शैलीमें अश्वघोषने सर्वप्रथम बौद्ध चिन्तनको जनमानस तक पहुँचानेका प्रयत्न किया । विद्यानन्दिने सौन्दरनन्दके निम्नलिखित दो पद्य सत्यशासन-परीक्षामें उद्धृत किये हैं१. "दीपो यथा निवृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न कांचिद्विदिशं न कांचित् स्नेहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ॥ २. जीवस्तथा निर्वृतिमभ्युपेतो नैवावनिं गच्छति नान्तरिक्षम् । दिशं न कांचिद्विदिशं न कांचित् मोहक्षयात्केवलमेति शान्तिम् ॥"" [सौन्दर० सर्ग १६, श्लो० २८, २९ ] उपर्युक्त दोनों पद्य बौद्धाभिमत मोक्षका विवेचन करने के लिए बौद्धशासन-परीक्षाके पूर्वपक्षमें प्रमाण रूपसे 'तदुक्तम्' कहकर उद्धृत किये गये हैं। [११] प्रशस्तपादभाष्य और सत्यशासन-परीक्षा प्रशस्तपादभाष्य कणादके वैशेषिकसूत्रपर आचार्य प्रशस्तपाद-द्वारा लिखा गया भाष्य है। इसमें विस्तारके साथ वैशेषिक सिद्धान्तोंका विवेचन किया गया है । प्रशस्तपादभाष्यपर व्योमशिवाचार्यको व्योमवती टीका है । इस टीकाके साथ भाष्य भी सूत्रग्रन्थ-सा बन गया है। सत्यशासन-परीक्षामें विद्यानन्दिने प्रशस्तपादभाष्यके अनेक सूत्र वैशेषिकदर्शनके प्रकरणमें उद्धृत किये हैं। [१२] शृङ्गारशतक और सत्यशासन-परीक्षा । महाकवि भत हरिके तीन शतक १. नीतिशतक, २. शृङ्गारशतक, ३. वैराग्यशतक प्रसिद्ध हैं। १. सत्य० नैया०६१ २. सत्य० वैशे०६४ ३. वही ६२४ ४. वही ६ ३५ ५. सत्य० बौद्ध०६५ ६. सत्य. वैशे०६१-३, प्रश० मा० पृ० ६,८,१०-१६ For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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