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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४ सत्यशासन-परीक्षा ब्रह्माद्वैतवादी संसारकी उत्पत्ति ब्रह्मसे ही मानते हैं। दूसरे शब्दोंमें उसे वे ब्रह्मका विवर्त कहते हैं । यही बात प्रतिपादित करके उपर्युक्त सूत्रका प्रमाण दिया गया है । [८] सांख्यकारिका और सत्यशासन-परीक्षा ईश्वरकृष्णकृत सांख्यकारिका सांख्यदर्शनका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । संस्कृत पद्योंमें सांख्य सिद्धान्तोंका समग्र विवेचन करनेवाला अपने ढंगका यह अनूठा ग्रन्थ है । सत्यशासन-परीक्षामें विद्यानन्दिने सांख्यकारिकाकी चार कारिकाएं सांख्यशासनके प्रसंगमें उद्धृत को हैं । प्रकृतिके स्वरूपका प्रतिपादन करते हुए 'सत्त्वरजस्तमसां साम्यावस्था प्रकृतिः' स कथनकी साक्षीमें निम्न कारिका उद्धत की है १. "सत्त्वं लघु प्रकाशकमिष्टमवष्टम्मकं चलं च रजः । गुरुवरणकमेव तमः साम्यावस्था भवेत्प्रकृतिः ॥' - [सांख्यका० १३ ] इस कारिकामें गुणोंके स्वरूपके विषयमें जो विचार किया गया है उनका भी आगे गद्यमें विवेचन किया गया है। सांख्य संमत सृष्टिक्रमका विवेचन करने के प्रसंगमें निम्न कारिका उद्धृत है२. "प्रकृतेर्महांस्ततोऽहंकारस्तस्माद्गणश्च षोडशकः । तस्मादपि षोडशकात् पञ्चभ्यः पञ्चभूतानि ॥" [सांख्यका० २२] इस कारिकाके विवेचनमें प्रकृतिके प्रधान और बहुधान नाम, महत् और अहंकारका स्वरूप, पञ्च तन्मात्रा, पञ्च ज्ञानेन्द्रियाँ, पञ्च कर्मेन्द्रियां, मन तथा पञ्च भूतोंकी सम्यक् व्याख्या की गयी है। सांख्याभिमत पुरुषके स्वरूपका निरूपण करते हुए निम्न कारिका उद्धृत है३. “मूलप्रकृतिरविकृतिर्महदाद्याः प्रकृतिविकृतयः पञ्च ।। षोडशकश्च विकारो न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरुषः ॥" [सांख्यका० ३] सांख्याभिमत कूटस्थनित्यताका निरास करते हुए प्रसंगवश सत्कार्यवादका समर्थन करनेवाली निम्न कारिका उद्धृत की है ४. "असदकरणादुपादानग्रहणात् सर्वसम्मवाभावात् । शक्तस्य शक्यकरणात् कारणभावाच्च सत्कार्यम् ॥"" [ सांख्यका०६] [6] न्यायसूत्र और सत्यशासन-परीक्षा न्यायसूत्र न्याय और वैशेषिक सिद्धान्तोंका विवेचन करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण सूत्र ग्रन्थ है। इसपर वात्स्यायनका न्यायभाष्य तथा उद्योतकरका न्यायवार्तिक महत्त्वकी टीकाएं हैं । विद्यानन्दिने अपने ग्रन्थों में न्यायसूत्रके अनेक सूत्रोंको उद्धृत किया है। सत्यशासन-परीक्षामें नैयायिक तथा वैशेषिकशासनोंके प्रसंगमें न्यायसूत्रके चार सूत्र उद्धृत किये गये है १. सत्य० सांख्य०६१ २. वही, ६२ ३. वही, ४ ४. वही, १२ For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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