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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्यशासन-परीक्षा प्रधान आदि चौबीस तत्वोंका खण्डन भोग्यके अभावमें मोक्ताका अभाव सांख्यशासन इष्ट-विरुद्ध भी है पुरुषको कूटस्थ नित्य माननेमें अनुमान-विरोध भोग अनित्य हैं, क्योंकि उत्पत्तिमान हैं भोगोंकी अनित्यतासे पुरुषकी अनित्यता वर्णाश्रमधर्म आदिका प्रतिपादक सांख्यागम भी प्रमाण नहीं दृष्टेष्ट विरुद्ध होनेसे सांख्यागम प्रमाण नहीं वैशेषिकशासन-परीक्षा [ पूर्वपक्ष ] बुद्धि आदि नव गुण गुणोंकी अत्यन्त समाप्ति मोक्ष द्रव्यादि पदार्थका साधर्म्य-वैधर्म्यरूप तत्त्वज्ञान मोक्षका कारण पृथ्वी आदि नव द्रव्य रूप, रस आदि चौबीस गुण उत्क्षेपणा आदि पाँच कर्म सामान्यके भेद पर और अपर सामान्य मोक्षप्राप्तिको प्रक्रिया पूर्वोपार्जित कर्मोंको भोगने विषयमें दो मत इक्कीस प्रकारके दुख [उत्तरपक्ष] वैशेषिकशासन प्रत्यक्ष-विरुद्ध है अवयव-अवयवी आदिके भेदैकान्तका खण्डन अवयव-अवयवी आदि कथंचित् भिन्न हैं अवयव-अवयवीका समवाय मानने में दोष वैशेषिकाभिमत समवायका खण्डन समवाय समवायोके आश्रित है या नहीं परमार्थतः समवाय समवायीके आश्रित नहीं हो सकता समवाय और समवायीका कौन-सा सम्बन्ध है समवायका स्वतः सम्बन्ध मानने में दोष प्रत्यक्ष सिद्ध पदार्थमें प्रश्न अनुचित समवायको स्वपरके सम्बन्धका कारण मानने में दोष समवायका नाना उपपत्तियों-द्वारा खण्डन समवायके अभावमें संयोगका अभाव सम्बन्धों के अभावमें सर्व वस्तुओंका अभाव संयोगके अभावमें सर्व द्रव्योंका अभाव प्रत्यक्ष विरोधका उपसंहार वैशेषिकशासन इष्ट-विरुद्ध भी है ईश्वरकर्तृत्व अनुमान तथा आगम-विरुद्ध है ईश्वरको संसारका कर्ता मानने में भनेक दोष अशरीरी ईश्वर तन्वादिका कर्ता नहीं हो सकता For Private And Personal Use Only
SR No.020664
Book TitleSatyashasan Pariksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandi Acharya, Gokulchandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1964
Total Pages163
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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