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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ नवम अध्याय ॥ पान ७२५ ॥ है, तहां तो धनधान्य आदि बाह्यपरिग्रहका त्याग प्रधान है। अर दशधर्म में कह्या है, तहां आहारादिक योग्यपरिग्रहका त्याग कया है । अर प्रायश्चित्तमें दोषका प्रतिपक्षी कया है । अर इहां में का, सो सामान्य है | आगे ध्यानके बहुतभेद कहनेकूं न्यारा राख्या था ताके अब भेद कहने का अवसर है, सो ताके पहली ध्यानका करनेवालेका तथा ध्यानका स्वरूप तथा ध्यानका कालकी निर्धारके अर्थ सूत्र कहें हैं ॥ उत्तमसंहननस्यैकाग्रचिन्तानिरोधो ध्यानमान्तर्मुहूर्तात् ॥ २१ ॥ याका अर्थ - उत्तम संहननका धारी पुरुषके एकाग्रचिंताका निरोध सो ध्यान है । सो उत्कृष्टपणे अंतर्मुहूर्तताई रहे । तहां आद्यके तीनि संहननकूं उत्तम कहिये वज्रऋषभनाराचसंहनन वज्रनाराचसंहनन नाराचसंहनन ऐसें । ए तीनूंही ध्यानके साधन हैं । बहुरि इनमें मोक्षका साधन एक आदिकाही है, अन्यतें मोक्ष होय नाहीं । ऐसें ए तीनि संहनन जाकै होय सो पुरुष ध्यानी है | बहुरि अग्र कहिये मुख, ऐसा एक मुख कहिये एकाग्र जाकै होय, सो एकाग्र कहिये मनकी चिंता है, सो अनेक पदार्थके अवलंबनतैं चलायमान है, याकूं अन्यसमस्तका अवलंबनतैं छुडाय एकअग्रविषै नियमरूप करै, सो एकाग्रचिंतानिरोध है । यह ध्यानका स्वरूप कह्या । बहुरि अंतर्मु For Private and Personal Use Only etectviceived red Breed Boerder
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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