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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 6 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ४६ ।। स्यान्नास्येव जीवादिः परद्रव्यक्षेत्रकालभावात् । स्यादस्तिनास्त्येव जीवादिः क्रमेण स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावात् । स्यादवक्तव्य एव जीवादिः युगपत् स्वपरद्रव्यक्षेत्रकालभावात् । स्यादस्यवक्तव्य एव जीवादिः स्वचतुष्टयाद्युगपत्स्वपरचतुष्टयाच्च । स्यान्नास्त्यवक्तव्य एव जीवादिः परचतुष्टयात् युगपत्स्वपरचतुष्टयाच्च । स्यादस्तिनास्त्यवक्तव्य एव जीवादिः क्रमेण स्वपरचतुष्टयात् युगपत्स्वपरचतुष्टयाच्च । इत्यादि सर्वपदार्थनि वाक्य जानने ॥ बहुरि प्रमाणवाक्य तौ सकलादेशी है । अरु नयवाक्य विकालदेशी है । सो सकलादेश तौ प्रमाणके आधीन है | बहुरि विकालदेश नयके आधीन है । सौ कैसे सो कहिये हैं, सकलादेश है सो अशेषधर्मात्मक जो वस्तु ताहि युगपत् कालादिकरि अभेदवृत्तिकरि अथवा अभेद उपचारकरि क है हैं । जातें यह प्रमाणकै आधीन है । बहुरि विकलादेश है सो अनुक्रमकरि भेदोपचारकरि अथवा प्राधान्यकर हैं है । जातें यह नयाधीन है । तहां जो अस्तित्व आदि धर्मनिकं कालादिककरि भेदविवक्षा करे तब एकही शब्दकै अनेक अर्थकी प्रतीति उपजावनेका अभाव है । तातें क्रमकरि कहै है । बहुरि जो तहां अस्तित्व आदि धर्म कालादिकरि अभेदवृत्तिकरि कहने तब एकही शब्दकरि अनेक धर्मकी प्रतीति उपजावनेकी मुख्यताकरि कहै तहां यौगपद्य है । ते काल आदि कौन ? For Private and Personal Use Only అరవండినను
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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