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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान ३८ ॥ शरीर भूत भविष्य वर्तमान तीन प्रकारकू नोआगमद्रव्यका पहला भेद ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यजीव कहिये । तथा मनुष्यजीवादिककाभी ऐसही जाननां । बहुरि सामान्यजीव नोआगमभाविद्रव्य तो हैही नाही । जातें जीवनभावकरि सदा विद्यमान है। बहुरि विशेष अपेक्षा मनुष्यादि भाविनोआगमद्रव्यजीवपरि लागाईये । तहां कोई जीव मनुष्यपर्यायवि देव आयुकर्म बांध्या, तहां अवश्य देव होयगा। तहां मनुष्यपर्यायविर्षेही देव कहनां ताकू भाविनोआगमदेवजीव कहिये । बहुरि तद्यतिरिक्तके भेद दोय । तहां सामान्यजीवअपेक्षा तो किसी कर्मकै उदयतें जीव होता नाही । बहुरि विशेषजीवअपेक्षा मनुष्यनामा नामकर्मके द्रव्यकू मनुष्यनाम तव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यमनुष्यजीव कहिये सो तद्यतिरिक्तका भेद है । बहुरि मनुष्य आहारादिक करै है तिनितें शरीरवृद्धि होय है यहु नोकर्म है । तातें आहारादिककू तद्यतिरिक्तका दूसरा भेद || नोकर्मद्रव्यजीव कहिये । बहुरि भावजीवभी दोय प्रकार है । तहां जीवके कथनका शास्त्रका जाननेवाला पुरुष जिस काल उस शास्त्रविर्षे उपयोगसहित होय ताकू आगमभावजीव कहिये । विशेषापेक्षाकरि मनुष्यजीवका कथनका शास्रका जाननेवाला तिसविर्षे उपयोगसहित होय तब मनुष्यआगमभावजीव निक्षेप For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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