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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 2048 www.kobatirth.org ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ५२५ ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सो विघ्न है । ताका करना सो अंतरायकर्मके आश्रवकी विधि जाननी ॥ याका विस्तार — ज्ञानका निषेध करना, सत्कारका निषेध करना, दान लाभ भोगोपभोग वीर्य स्नान अनुलेपन सुगंध पुष्पमाला वस्त्र भूषण शयन आसन भोजन आदिका परकैं विन करना, परकी संपदा देखि आश्चर्य करना, अपना द्रव्यका अतिलोभतें दानादिक न करने, सामर्थ्य होय तिसमें प्रदान करना, परकूं झूठा दूषण लगावना, निर्माल्यद्रव्य लेना, निर्दोष उपकरणका त्याग करना, परका वीर्य लोपना, धर्मका विच्छेद करना, भला आचारविषै तपस्वी जनका पूजाविष विघ्न करना, मुनिका तथा दीन अनाथका वस्तु पात्र वस्तिकाका प्रतिषेध करना, पर कैं क्रियाका रोकना, बांधना, गुह्यअंगका छेदना, कान नाक ओष्ठ काटना, प्राणिनिका घात करना इत्यादिक जानना | हां कोई पूछे, आश्रवका विस्तार सूत्रमें विनाकह्या कैसे कहो हौ ? ताका समाधान, जो, वेद के सूत्र में इतिशब्द कह्या है सो प्रकारार्थमें है, ताकी अनुवृत्ति ले सर्वकर्मके आश्रवमें विस्तार का है । ऐसें कह्या जो आश्रवका विधान तिसकरि उपजाया जो आठपकार ज्ञानावरणआदि कर्म तिनके निमित्ततें आत्माकैं संसाररूप विकार ताकूं आत्मा निरंतर भोगवै है । जैसें For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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