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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। षष्ठ अध्याय ॥ पान ५११॥
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याका अर्थ- रागसहित संयम संयमासंयम अकामनिर्जरा बालतप ए देवआयुके आसवके कारण हैं । तहां ससगसंयम संयमासंयम इनका व्याख्यान तो पहले कीया थाही । बहुरि काहूकू | बंदीखाने रोकै तथा बंधनसे बांधै तहां भूक तृषाका भुगतना बहुरि स्रीका संगम नाहीं तातें ब्रह्मच- | र्यभी सहजही तथा भूमिपर सोवना शरीरविर्षे मलका धारण तथा परके कीये पीडा दुःख सहना सो | अकाम निर्जरा है । विनालिये दुःख आये तिनकू सहैहै, सो पापकर्मनिकी निर्जरा होय है । बहुरि | मिथ्यात्वकरि सहित विनाउपाय कायक्लेश जामें पाईये ऐसे कपटकी बहुलताकरि व्रत धारना जामें | होय, सो बालतप कहिये । ते ए देवआयुके आश्रवके कारण जानने ॥
इहां विस्तार, जो, जिनतें अपना भला जानें ऐसे मित्रनिका तौ संबंध करै, आयतन कहिये कल्याण होनेके ठिकाणे देव शास्त्र गुरु तिनकी सेवा करै, भले धर्मका आश्रय करै, धर्मका गुरुपणां महानपणां दिखावै, निर्दोष प्रोषधउपवास करै, जीवअजीवपदार्थाने के विनाजाणे बालतप करै, तथा अज्ञानरूप संयम पाले ऐसें केई क्लेशभावनिके विशेष भवनवासी व्यंतर आदि सहस्रारस्वर्गपर्यंतविणे उपजै हैं । बहुरि अकामनिर्जरावाले सूत्रमें कहे हैं तिनके विनालिये दुःख आवै तामें संक्लेशपरिणाम न करे ऐसा बहुरि धर्मबुद्धि” पर्वतः पडै वृक्ष चढि पडै अनशन करै अमिजलमें |
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