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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४६३ ॥ पू0, जो, जघन्यगुण परमाणु केई लोकमें होय हैं, ऐसा निश्चय काहे होय? ताका समाधान, जो, केई स्कंधनिमें सचिकणपणां घटता है, कोईमें वधता है, तथा केईमें रूक्षगुण घटता है, केईमें बधता है । ऐसें घटतें घटतें कोई परमाणु जघन्यगुणभी हैं, ऐसा अनुमानप्रमाणतें निश्चय होय है ॥ आगे ए दोऊ जघन्यगुण स्निग्धरूक्षपरमाणुनिकू वर्जिकरि अन्य स्निग्धरूक्षपरमाणुनिक परस्पर बंध होय है। ऐसा अविशेष प्रसंग होते, तहांभी जिनके बंध नाहीं होय है, तिनका निषेधका सूत्र कहै हैं ॥गुणसाम्ये सहशानाम् ॥३५॥ __ याका अर्थ- गुणसाम्य कहिये जिनकै अविभागपरिच्छेदरूप गुण बराबरि होय ऐसे परमाणुनिकै अर सदृश कहिये स्निग्धही स्निग्ध तथा रूक्षही रूक्ष होय तिनकैभी बंध नाहीं होय || है । इहां सदृशशब्दका अर्थ तो समानजातिके परमाणु है। बहुरि साम्यका अर्थ बराबरि अविभागपरिच्छेद है । तहां ऐसा अर्थ होय है, दोयगुण स्निग्धपरमाणुनिकै दोयगुण स्निग्धपरिमाणुनिकरि बंध नाही है। तीनि गुणस्निग्धके तीनि गुण स्निग्धकरि बंध नाही है । बहुरि दोय गुण | | स्निग्धपरमाणुनिके दोय गुण रूक्षपरमाणुनिकनिकरि बंध नाहीं है । दोय गुण रूक्षपरमाणुनिक | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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