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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचानिका पंडित जयचंदजीकृता ।। पंचम अध्याय || पान ४६१ ॥ कारण कहा ? ताका समाधान, जो, तिन परमाणुनिके पुद्गलस्वरूपकरि अविशेष है, तौऊ अनंतपर्यायनिकै परस्परविलक्षणपरिणामकरि सामर्थ्य होय है, तातें बंध होय है, ऐसें प्रतीतिमें आवै है । याका सूत्र कहै हैं । स्निग्धरूक्षत्वाइन्धः ॥ ३३ ॥ याका अर्थ-स्निग्ध कहिये सचिक्कण रूक्ष कहिये लूखा इन दोऊपणातें पुद्गलपरमाणुनिक परस्पर बंध होय है। तहां बाह्य अभ्यंतर कारणके वशतें सचिक्कणपर्यायका प्रगट होना सो स्निग्ध है । तैसेंही रूक्ष है । ऐसें स्निग्धरूक्षपणा है । जो सचिक्कणगुणपर्याय होय सो तौ स्निग्धपणा है । तिसतें विपरीतपरिणाम होय सो रूक्षपणा है। दोऊनिकू हेतुकरि कह्या है । ऐसें बंध होय है । सो जहां दोय परमाणु रूक्ष तथा सचिकण परस्पर मिलें तब बंध होतें दोय अणुका स्कंध होय ॥ है। ऐसेंही संख्यात असंख्यात अनंत परमाणुनिका स्कंध उपजै है। तहां परमाणुनिमें रूक्ष | सचिक्कण गुण कैसे हैं ? सो कहिये है- एकगुण स्निग्ध दोयगुण स्निग्ध तीनिगुण स्निग्ध च्यारि | गुण स्निग्ध संख्यातगुण स्निग्ध असंख्यातगुण स्निग्ध अनंतगुण स्निग्ध ऐसे अनंतभेदरूप हैं। | ऐसेंही रूक्षगुणभी जानना । ऐसें रूक्ष सचिक्कणगुण परमाणु हैं । जैसें जल छेलीका दूध गऊका PAPARINGTARINAME.ORAPARINEEYPAPSARAMES For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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