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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ।। पान ४५२ ॥ __ आगें पूछे है, इन पुद्गलनिक अणुस्कंधलक्षण परिणाम है, सो अनादिका है, कि आदिमान् है ? ताका उत्तर, जो, उत्पत्तिअपेक्षा आदि मान है । फेरि पूछे है, सो जो आदि माने है, तौ कोंन निमित्ततें उपजै है ? सो कहो। तहां प्रथमही स्कंधनिकी उत्पत्तिका कारण कहनेकू | सूत्र कहै हैं ॥ भेदसङ्घातेभ्य उत्पद्यन्ते ॥२६॥ ____याका अर्थ- पुद्गलनिके स्कंध हैं ते भेदतें तथा संघातर्ते उपजे हैं। तहां बाह्य अभ्यंतर निमित्तके वशतें स्कंध विदारे जाय सो भेद है । बहुरि न्यारे न्यारे होय तिनका एकपणां होना सो संघात है । इहां दोऊकै बहुवचन है सो तीसरेके ग्रहणके अर्थि है । भेदतें संघाततै भेदसंघाततै ऐसें तीनि हेतुनें स्कंध उपजे हैं। सोही कहिये है । दोय परमाणुके संघात दोय प्रदेशका स्कंध उपजै है । दोय प्रदेशका स्कंध अर एक परमाणु मिले तीनि प्रदेशका स्कंध उपजै । तथा तीनि परमाणु मिलैभी तीनि प्रदेशका स्कंध उपजै है । बहुरि दोय स्कंध दोय दोय परमाणुके मिले । तथा एक तीनि परमाणुका स्कंध अर एक परमाणु मिले । तथा च्यारि परमाणु खुली मिले तब च्यारि परमाणुका स्कंध निपजै। ऐसेही संख्यात असंख्यात अनंत अनंतानंतके संघात" तिन NSARPANCATIONPATSAPNPARMARATPAGAPAGAPRINCIPRONAFINAR For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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