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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra excllbreez www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३९८ ॥ भावरूप पदार्थ है, सो अनेकरूप है । जातैं भाव है सो अभाव विलक्षण है । अभाव तौ सदा एकरूप है । यातें भाव अनेकरूपही होय, ऐसा न मानियै तौ भाव अभाव में विशेष न ठहरे । सो ऐसा भाव छह प्रकारका है । जन्म | अस्तित्व । निवृत्ति । वृद्धि । अपक्षय | विनाश । तहां बाह्याभ्यंतर कारणके वशर्तें वस्तु उपजै सो जन्म है । जैसें सुवर्ण कडापनाकरि उपज्या । तथा मनुष्यगतिनामकर्मका उदयकरि जीव मनुष्य भया बहुरि अपने निमित्तके वश वस्तुका अवस्था सो अस्तित्व है । सो ऐसा अस्तित्व है सो शब्दकें तथा ज्ञानके गोचर है । ऐसें मनुष्यआदि आयुकर्म के उदयकरि जीव मनुष्य आदि पर्यायविषै अस्तित्वरूप रहे । बहुरि सत अवस्थातरकी प्राप्तिकं निवृत्ति कहिये याकूं परिणाम भी कहिये । बहुरि पहले स्वभावतें अनुकमतें वधै ताकूं वृद्धि कहिये | बहुरि पहले स्वभावतें अनुक्रमतें घंटे ताकूं अपक्षय कहिये । बहुरि पर्यायसामान्यका अभाव होय ताकूं विनाश कहिये । ऐसें भाव है सोही अनेकरूप क्षणक्षण में होय है । सो सर्वथा अभावको ऐसें मानियें तौ सिद्धि होय नाहीं । बहुरि सर्वथा सत्कं नित्यही मानियें तौ प्रत्यक्ष जन्मआदि होय हैं, तिनका विरोध आवै । इत्यादि युक्ति में सर्वथा एकान्तपक्ष सर्वही बाधित है ऐसेंही अनेकवचन तथा अनेक ज्ञानका विषयपणांतें भी भावरूप जीव नामा पदार्थ एकही For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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