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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kalassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३८६ ॥ पूर्वउत्तरके कौणविर्षे सारस्वतनिका विमान है। देवनिकी संख्या सातसै है । बहुरि पूर्वदिशावि आदित्यनिका विमान है। देवनिकी संख्या सातसै है । बहुरि पूर्व दक्षिणके कौंणमें वह्निदेवनिका विमान है । देवनिकी संख्या सात हजार सात है । बहुरि दक्षिणदिशावि अरुणका विमान है । देवनिकी संख्या सात हजार सात है। बहुरि दक्षिणपश्चिमका कोंणमें गईतोयनिका विमान है। देव नव हजार नव हैं। बहुरि पश्चिमदिशाविर्षे तुषितनिका विमान है। देव नव हजार नव हैं । बहुरि उत्तर पश्चिमके कोणमें अव्यावाधनिका विमान है। देव ग्यारह हजार ग्यारह हैं। बहुरि उत्तरदिशाविर्षे अरिष्टनिका विमान है। देव ग्यारह हजार ग्यारह हैं। बहुरि चशब्दकरि समच्चय किये इनके अंतरालमें दोयदोय देवनिके समह और हैं सो कहिये हैं। सारस्वत आदित्यके अंतरालमें अन्याभ सूर्याभ ये हैं। तिनके देव अन्याभके सात हजार सात हैं, सूर्याभके नव हजार नव हैं। बहुरि आदित्य वह्निके अंतरालमें चंदाभ सत्याभ हैं। तामें चन्द्राभके देव ग्यारह हजार ग्यारह हैं, सत्याभके तेरह हजार तेरह हैं । बहुरि वह्नि अरुणके अंतराल में श्रेयस्कर क्षेमंकर हैं। तहां श्रेयस्करके देव पंद्रह हजार पंद्रह हैं, क्षेमंकरके सत्रह हजार सत्रह हैं। | बहुरि अरुण गर्दतोयके अंतरालमें वृषभेष्ट कामचर हैं। तहां वृषभेष्टके उगणीस हजार उगणीस ఆరు వనరులు అవుతాయని For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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