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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३५॥ | मित्तज्ञान है । बहुरि अक्षररूप तथा अनक्षररूप शुभ अशुभ शब्द सुननेते इष्ट अनिष्ट फल जाननां सो स्वरनिमित्तज्ञान है । बहुरि मस्तकवि मुखविर्षे गलाविर्षे तिल मुश आदि चिन्ह देखने” तीन कालका हित अहित जाननां सो व्यंजननिमित्तज्ञान है । बहुरि श्रीवृक्ष स्वस्तिक भंगार कलश आदि शरीरवि चिन्ह देखनेते तीन कालकै विर्षे पुरुषके स्थान मान ऐश्वर्यादिका विशेष जाननां सो लक्षणनिमित्त ज्ञान है । बहुरि वस्त्र शस्त्र छत्र उपानत् कहिये पगांकी जोडी अर आसन शयन आदिवि देव मनुष्य राक्षस आदिके विभागकरि शस्त्रतें कटै कांटातें कटे मूसा आदि काटे तिनिका देखनेतें तीन कालके लाभ अलाभ सुखदुःखका जाननां सो छिन्ननिमित्तज्ञान है । बहुरि वात पित्त श्लेष्मके दोषकरि रहित जो पुरुष ताकू स्वप्न आवै सो पाछिली रातीके भागविर्षे चंद्रमा सूर्यका तथा पृथ्वी समुद्रका मुखविर्षे प्रवेश देखै तथा समस्त पृथ्वीमंडलका आच्छादन देखै ए तौ शुभस्वप्न अथवा घृततैलकरि अपना देह आर्दित देखै तथा गर्दभ ऊंटपरि आपकू चढा देखै तथा दिशाका गमन देखै ये अशुभ स्वप्न इत्यादि स्वपके देखने” आगामी जीवना मरनां सुख दुःख आदि जाने सो स्वानिमित्तज्ञान है । ए आठ निमित्तज्ञान जाकै होय सो अष्टांगनिमित्तज्ञान ऋद्धि है । बहुरि | द्वादशांग चौदह पूर्व तौ न पब्या होय अरु प्रकृष्ट श्रुतज्ञानावरणका क्षयोपशमतें ऐसी असाधारण | IPARAGAPAGECIPARSNEPExpaPAARPORATAPAR APP For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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