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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३२ ॥ जिनीकै होय ते अनभिगतचारित्र आर्य हैं । बहुरि दर्शनआर्य दश प्रकार हैं । ते सम्यग्ग्रहणके कारणकी अपेक्षातें जानने । तहां जे सर्वज्ञ अर्हत्प्रणीत आगमकी आज्ञामात्र कारणते श्रध्दावान् होय, ते आज्ञासम्यक्त्ववान् कहिये । बहुरि निग्रंथमोक्षमार्गके दर्शन श्रवणमात्रौं श्रध्दावान् होय, ते मार्गश्रध्दावान हैं । बहुरि तीर्थंकर आदिके पुराण आदिके उपदेशके निमित्तः श्रध्दावान होय, ते उपदेशरुचिमान आर्य हैं। बहुरि मुनिनिके आचार श्रुतके श्रवणमात्रौं श्रध्दावान् होय, ते सूत्रसम्यक्त्ववान हैं । बहुरि | बीजपदरूप जे सूक्ष्म अर्थ ताके निमित्ततें श्रध्दावान होय, ते बीजरुचिमान हैं। बहुरि जीवादिप दार्थका संक्षेप उपदेश” श्रध्दावान होय, ते संक्षेपरुचि हैं। बहुरि अंगपूर्व में जैसे कहै तैसें विस्तार रूप प्रमाणनयादिकतें निरूपण कीये जे तत्त्वार्थ, तिनिके श्रवणते श्रध्दावान होय, ते विस्ताररुचि हैं। बहुरि वचनके विस्तारविनां सुन्या अर्थके ग्रहणते श्रध्दावान होय, ते अर्थदर्शनवान हैं । बहुरि द्वादशांगके जाननेते श्रध्दावान होय, ते अवगाढरुचि हैं। बहुरि परमावधि केवलज्ञानदर्शनतें जीवादि पदार्थनिळू जाने जो “आत्मा उजल श्रद्धानरूप भया" तहां परमावगाढरुचि कहिये 2 ऐसे ये दश दर्शन आर्य हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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