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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Baada www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । तृतीय अध्याय ॥ पान ३९८ ॥ ॥ तद्विगुणद्विगुणा ह्रदाः पुष्कराणि च ॥ १८ ॥ याका अर्थ - पहले हतैं तथा कमलतें दूणे दूणे लंबाई चौडाई रूप अगिले अगिले ह तथा कमल जाननां ॥ तहां पद्मद्रहतें दूणा दोय हजार योजन लांबा हजार योजन चौडा बीस योजन ऊंडा महापद्मद्रह जाननां । बहुरि यातें दृणां च्यारि हजार योजन लांबा दोय हजार योजन चौडा चालिस योजन ऊंडा तिगिंछ द्रह जाननां । याही भांति कमल दोय योजन च्यारि योजनका लांबा चौडा आदि जाननां ॥ आगे तिनि कमलनिविषै निवास करनेवाली देवीनिके नाम आयु परिवार प्रतिपादन के अर्थ सूत्र कहै हैं ॥ तन्निवासिन्यो देव्यः श्रीह्रीधृति कीर्तिबुद्धिलक्ष्म्यः पल्योपमस्थितयः ससामानिक परिषत्काः ॥ १९॥ याका अर्थ - तिनि कमलनिकी कर्णिका के मध्यदेश के विषै सरदके निर्मल पूर्ण चंद्रमा की द्युतिके जीतनहारे कोश लंबे अर्धकोश चौडे कछु घाटि कोशके ऊंचे महल हैं । तिनिवि निवास करनेवाली देवी हैं श्री ही धृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी ए हैं नाम जिनिके ते वसै हैं । तिनकी एक For Private and Personal Use Only verb
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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