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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ఆనందనలుంటారణండలండలండర్యంను ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २९३ ॥ मनुष्य , ते तीनूं वेदसहित हैं ॥ तीन हैं वेद जिनिकै ते त्रिवेद कहिये । ते वेद कैसे ? स्त्री पुरुष नपुंसक । इहां पूछ है, तिनि वेदनिका अर्थ कहा ? तहां कहै हैं, जो वेदिये ताकू वेद कहिये । ताका लिंग ऐसा अर्थ है । सो दोय प्रकार है द्रव्यलिंग भावलिंग । तहां द्रव्यलिंग तौ नामकर्मके उदय से भये ऐसे योनि तथा मेहन आदि आकारसहित होय है। बहुरि भाववेद नोकषाय नामा जो वेदकर्म ताके उदयतें आत्माका परिणाम है । तहां जाविर्षे गर्भधारण होय सो तो स्त्री है । बहुरि जो अपत्य कहिये पुत्रादिककू उपजावै सो पुरुष है। बहुरि इनि दोऊ शक्तिनितें रहित होय सो नपुंसक है । बहुरि इनिकी संज्ञा है सो रूढिशब्दरूप है । रूढिशब्दकी व्युत्पत्ति कीजिये है सो तिस व्युत्पत्तिमात्र प्रयोजनकै अर्थिही है । जैसैं गऊ शब्दकी निरुक्ति करिये, जो चालै ताकू गऊ कहिये । सो इहां निरुक्ति रूढिहीतें जाननी । जातें बैठा सोवता गऊकुंभी गऊही कहिये । ऐसें रूढि जाननी। जो ऐसे न मानिये तो गर्भधारणक्रियाहीकू प्रधान मानिये तो बालस्त्री तथा वृद्धस्त्री तियंचणी मनुष्यणी तथा देवांगना तथा कार्मणकाययोगविर्षे अंतरालमैं तिष्ठती स्त्रीनिकै गर्भधारण नाही, तब स्त्रीपणाका नाम न ठहरै । तथा पुत्रादिक उपजायविनां इनिका पुरुषपणाका नाम न ठहरै । तातें इहां । For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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