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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय । पान २८८ ॥ सूत्र कहै हैं-- ॥ औपपादिकं वैक्रियिकम् ॥ ४६॥ याका अर्थ-- वैक्रियिक शरीर है सो उपपादजन्मविर्षे उपजै है। उपपादविर्षे होय सो औपपादिक कहिये । सो सर्व वैक्रियिक जाननां ।। आगें पूछे है, जो, वैक्रियिक औपपादिक है तो उपपादवि न उपजै ताकै वैक्रियिकपणाका अभाव आया । ऐसें कहते उतरका सूत्र कहै हैं ॥लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ याका अर्थ-- लब्धितें भयाभी वैक्रियिक कहिये है ॥ इहां चशदकर वैक्रियिकसंबंध करनां । तपके विशेषतें ऋद्धिकी प्राप्ति होय, ताकू लब्धि कहिये । ऐसी लब्धि जाकू कारण होय सो लब्धिप्रत्यय कहिये । सो वैक्रियिक लब्धिप्रत्ययभी होय है ऐसा जाननां ॥ आगें पूछे है, कि लब्धिप्रत्यय वैक्रियिकही है कि औरभी है ? ऐसा पूछे सूत्र कहै हैं-- ॥ तैजसमपि ॥४८॥ याका अर्थ-- तैजसशरीरभी लब्धिप्रत्यय होय है । इहां अपि शब्दकरि लब्धिप्रत्ययका For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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