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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदाकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २७९ ॥ ऊपरि कठिण करडा होय त्वचामांही लोहीकरि वेष्टित होय गोलाकारसा होय सो अंड है । ताविर्षे उपजै ताकू अंडज कहिये । बहुरि जो ऊपरि वेव्याविनांही होय सो योनितें निसरताई संपूर्ण अवयव शरीरसहित चलनादिककी सामर्थ्यसहित होय सो पोत कहिये । ए तीनही गर्भयोनि कहिये । आगै पूछे है, जो जरायुज अंडज पोत जीवनिकै तो गर्भतें उपजनेका नियम कह्या । अब उपपादजन्म कौनके होय है ? ऐसे पूछ सूत्र कहे हैं ॥ देवनारकाणामुपपादः ॥ ३४॥ याका अर्थ- देवनारकी जीवनिकै उपपादजन्म है ॥ देवनिकै बहुरि नारकीनिकै उपपादजन्म जाननां । और जन्म नांही है ऐसा नियम जाननां ॥ आगै पूछे है , इनि सिवाय अन्य जीवनिकै कौनसा जन्म है ? ऐसे पूछ सूत्र कहै हैं ॥शेषाणां सम्मूर्च्छनम् ॥३५॥ याका अर्थ- गर्भजन्म अरु देव नारकीसिवाय अन्यजीव रहे तिनिकै सम्मूर्च्छन जन्म | है ॥ गर्भज बहुरि औपपादिक जीवनिविनां अवशेष अन्यजीव रहे तिनिकै सम्मूर्छन जन्म है । ऐसे ए तीनही सूत्र नियमकै अर्थि हैं । दोनू तरफा नियम इनिकै जाननां । कैसै ? जरायुज अंडज For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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