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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता || प्रथम अध्याय ॥ पान ६ ।। प्रारंभ कीया है। तहां मुख्य तौ सर्वार्थसिद्धि नाम संस्कृत टीकाका आश्रय है । बहुरि जहां जहां विशेष लिख्या है सो तत्त्वार्थवार्तिक श्लोकवार्तिकका आश्रय जानना । याविषै कहीं भूलि चूक होय तौ विशेषज्ञानी सोधियो || तां प्रथमही सर्वार्थसिद्धिटीकाकार मंगल अर्थि आप्तका असाधारणविशेषणरूप श्लोक रच्या है, सो लिखिये हैं | मोक्षमार्गस्य नेतारं । भेत्तारं कर्मभूताम् ॥ ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां । वन्दे तद्गुणलब्धये ॥ १ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir याका अर्थ - मोक्षमार्ग के प्रवर्ताविनहारे, कर्मरूप पर्वत के भेदनहारे, समस्ततत्त्वनिके जाना - नहारेको मेरै तिनि गुणनकी प्राप्तीके अर्थि मैं वंदौ हौं । भावार्थ - इस शास्त्रविषै मोक्षमार्गका उपदेश है । सो जो घातिकर्मका नाशकरि सर्वज्ञ वीतराग भया होय, सोही मोक्षमार्गका प्रवर्ताविनहारा आप्त है । तिसहीकूं नमस्कार किया है । जा सर्वज्ञवीतरागका प्रवतीयाही मोक्षमार्ग प्रमाणसिध्द होय । काहेतैं ? जातें जो सर्वज्ञ न होय अज्ञान अयथार्थभी कहै । तथा रागद्वेषसहित होय तौ क्रोध, मान, माया, लोभ आदि For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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