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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान २०४ ॥ canteracobreeritsaixeroxerestivaaseearesertsok. यास्यसि याका ‘यास्यामि' ऐसा कहनां, जो, जाऊंगा सो । 'नहि यास्यसि' कहिये नाही जायगा, तेरा पिताभी ऐसें गया नांही । भावार्थ- हास्यका प्रसंगविर्षे ऐसा कहनां होय है। जो तूं मानै है मै रथ चढिकरि जाऊं, सो ऐसें तेरा पिताभी न गया, तूं कैसा जायगा? तहां तूं कहनेकी जायगा तौ हूं कहनेका शब्द कह्या । बहुरि हूं कहनेकी जायगा तूं कहनेका शब्द कह्या। तब पुरुषव्यभिचार भया॥ बहुरि कालव्यभिचार; जैसे “ विश्वदृश्वाऽस्य पुत्रो जनिता" याका अर्थ-जिहि विश्व कहिये लोककू देख्या सो पुत्र याकै होसी । विश्व देख्या यहु तो अतीतकालवाचक शब्द है । बहुरि जनिता यहु आगामी कालवाचक शब्द है । सो इहां कालव्यभिचार भया। बहुरि — भाविकृत्यमासीत् ' ऐसें कहै, तँ भावि कहिये होणहार कार्य — आसीत् ' कहिये हूवा, सो इहांभी अतीत अनागतकालका व्यभिचार भया ॥ बहुरि उपग्रहव्यभिचार, जो ‘तिष्ठति ' ऐसा परस्मैपद धातु है, ताका — संतिष्ठते' 'प्रतिष्ठते' ऐसा भया । बहुरि 'रमते' ऐसा आत्मनेपदी धातु है ताका ‘विरमति उपरमति ऐसा भया। ऐसे उपसर्गके चलते आत्मनेपदी धातूका परस्मैपदवचन भया । बहुरि परस्मैपदीका आत्मनेपदी भया । ऐसे उपग्रहव्यभिचार है ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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