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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SPRESPAPEPARGAASPIONEEDOMAASPARODARPANJAR ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदनीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान १६० ॥ भेदभी है बारहभेदभी है ऐसें । तहां दोय भेद तो अंगवाह्य अर अंगप्रविष्ट ऐसे हैं । ___ बहुरि अंगबाह्य तौ अनेकभेदरूप है। तिनिके नाम दशवैकालिक उत्तराध्ययन आदिक ते चौदह प्रकीर्णक कहावै हैं, तिनिके नाम- सामयिक । चतुर्विंशति स्तव । वंदना। प्रतिक्रमण । वैनायक । कृतिकर्म । दश वैकालिक । उत्तराध्ययन । कल्पव्यवहार । कल्पाकल्प । महाकल्प । पुंडरीक | महापुंडरीक । निषेधिका। ऐसें चौदह हैं ॥ बहुरि अंगप्रविष्टके बारह भेद हैं । ते कौन सोही कहिये हैं। १ आचार । २ सूत्रकृत । ३ स्थान । ४ समवाय । ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति । ६ ज्ञातृधर्मकथा। ७ उपासकाध्ययन । ८ अंकृतदश । ९ अनुत्तरोपपादिक दश । १० प्रश्नव्याकरण ११ विपाकसूत्र । १२ दृष्टिवाद । ऐसे बारह ॥ तहां दृष्टिवादके भेद परिकर्म । सूत्र । प्रथमा नुयोग । पूर्वगत । चूलिका ऐसे पांच ॥ तहां परिकर्मके भेद १ चंद्रप्रज्ञप्ति । २ सूर्यप्रज्ञप्ति । ३ जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति । ४ द्वीपसागरप्रज्ञप्ति । ५ व्याख्याप्रज्ञप्ति ॥ बहुरि चूलिकाके पंच भेद १ जलगता। २ स्थलगता । ३ मायागता । ४ रूपगता । ५ आकाशगता । ऐसे पांच ॥ बहुरि पूर्वगतके भेद चौदह १ उत्पाद । २ अग्रायणीय । ३ वीर्यप्रवाद । ४ अस्तिनास्तिप्रवाद । ५ ज्ञानप्रवाद | ६ सत्यप्रवाद । ७ आत्मप्रवाद । ८ कर्मप्रवाद । २ प्रत्याख्याननामधेय । १० विद्यानुवाद americoraseksketrepreresperiesserials For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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