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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता । प्रथम अध्याय ॥ पान १४० ॥ ॥मतिः स्मृतिः सञ्ज्ञा चिन्ताऽभिनिबोध इत्यनर्थान्तरम् ॥ १३॥ याका अर्थ- मति स्मृति संज्ञा चिंता अभिनिबोध ए पांच अनांतर कहिये अन्य अर्थ नाही। मतिज्ञानहीके नाम हैं ॥ आदिविर्षे कह्या जो मतिज्ञान ताके येते पर्यायशद कहिये नामांतर हैं। जाते ए सर्वही मतिज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशमकरि उपज्या जो उपयोग ताही संबंधी हैं । इनकी श्रुतज्ञानादिविर्षे प्रवृत्ति नांही। तहां मननं कहिये मानना इंद्रियमन अवग्रहादिरूप साक्षात् जानना सो तौ मति कहिये । स्मृति कहिये स्मरण । जानेका पीछे यादि करना सो स्मृति स्मरण कहिये । संज्ञा संज्ञान कहिये । जानेको यादिकरि वर्तमान जानेकै जोडिकरि जाननां सो संज्ञान कहिये । याकू प्रत्यभिज्ञानभी कहिये। चिंतनं चिंता कहिये यहु चिन्ह है तहां इसका चिन्हीभी होय है इत्यादि ऐसा चिंतवन करनां सो चिंता कहिये । याकू तर्कभी कहिये । अभिनिबोधनं कहिये सन्मुख लिंगादि देखि लिंगी आदिका निश्चय करै सो अभिनिबोध कहिये । याळू स्वार्थानुमानभी कहिये । इनि शब्दनिका भावसाधनरूप अर्थ कीया है। बहुरि करणसाधन | कर्तृसाधन आदिभी यथासंभव जाननां । इनिका नामभेदतें अर्थभेद होतेभी रूढिके बलते मतिके नामांतरही जानने । जैसे इंद्र शक्र पुरंदर ऐसे नामभेदतै अर्थभेद होतेभी समभिरूद नयकी ఆకుల లలలలకertiseasers For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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