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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir vracteriserabeeraipreraldkeertskeeriasaneriSAD. ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ।। पान ९२ ।। एकेंद्रियवत् काल है । बसकायिकनिवि मिथ्यादृष्टिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट दोय हजार सागर पृथक्त्व कोडी पूर्व अधिक है। बाकीके गुणस्थाननिका पंचेंद्रियवत् काल है ॥ योगके अनुवादकरि वचनमनोयोगीनिविर्षे मिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि संयतासंयत प्रमत्त अप्रमत्त संयत सयोगकेवलीनिका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त सासादनसम्यग्दृष्टीका गुणस्थानवत् सम्यग्मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय उत्कृष्ट पल्योपमकै असंख्यातवै भाग काल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य तो एक समय है । उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । च्यारि उपशमकनिका च्यारि क्षपकनिका नानाजीवकी अपेक्षा एकजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय है । उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त काल है । काययोगीनिविर्षे मिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य एकसमय है । उत्कृष्ट अनंतकाल है । सो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है । अवशेष गुणस्थाननिका मनोयोगिवत् काल है । अयोगीनिका गुणस्थानवत् काल है ॥ वेदके अनुवादकरि स्रीवेदविर्षे मिथ्यादृष्टिका नानाजीव अपेक्षा सर्वकाल है। एकजीव अपेक्षा For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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