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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 40yeertridgerikeertsweerterpretarrass ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ प्रथम अध्याय ॥ पान ८९ ॥ जीवकी अपेक्षा तीन भंग हैं । अभव्यकै तौ अनादि अनंत है । भव्यकै अनादि सांत है, सादि सांत है । तहां सादि सांत जघन्य तौ अंतमुहूर्त है । उत्कृष्ट अर्द्धपुद्गलपरिवर्तन कछू घाटि है | बहुरि सासादनसम्यग्दृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य तौ एकसमय है । उत्कृष्ट पल्योपमकै असंख्यातवै भाग है । एकजीव अपेक्षा जघन्य एक समय उत्कृष्ट छह आवली है । सम्यमिथ्यादृष्टीका नानाजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट पल्योपमकै असंख्यातवै भाग है । एक जीव अपेक्षा जघन्यभी उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । असंयत सम्यग्दृष्टीको नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट तेतीस सागर कछू अधिक । बहुरि संयतासंयतको नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट कोडिपूर्व कछू घाटि । प्रमत्त अप्रमत्त संयतको नानाजीवकी अपेक्षा सर्वकाल है । एकजीवकी अपेक्षा जघन्य एक | समय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । बहुरि च्यारि उपशमश्रेणीवाला गुणस्थाननिका नानाजीवकी अपेक्षा अर एक जीवकी अपेक्षा जघन्य तो एकसमय उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त है । बहुरि च्यारि क्षपकश्रेणीवाला आठवां नवमां दशमां बारहमा गुणस्थानका बहुरि अयोगकेवलीका नानाजीवकी अपेक्षा अर एकजीवकी अपेक्षा जघन्यमी अरु उत्कृष्टभी अंतर्मुहूर्त है । बहुरि सयोगकेवलीनिका नानाजीवकी For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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