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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। प्रथम अध्याय ॥ पान ८६ ॥ दर्शनके अनुवादकरि चक्षुर्दर्शनवाले मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिकै पंचेंद्रियवत् स्पर्शन है । अचक्षुर्दर्शनवालेनिके मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंतनिकै अवधिदर्शन केवलदर्शनवालेनिकै गुणस्थानवत् स्पर्शन है ॥ लेश्याके अनुवादकरि कृष्ण-नील-कापोतलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि सर्वलोक स्पर्शे हैं ! सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग स्पर्श हैं । अर पांच भाग च्यारि भाग देशोन चौदह भागमैसूं स्पर्शे हैं । इहां कोई पूछे है, जो, बारह भाग क्यों न कहे ? ताका समाधानजो, नरकम अवस्थितलेश्या है । छठी पृथ्वीवाला मारणांतिक करे सो मध्यलोकमैं आवै पांच राजू स्पर्श । अर जिनिके मतमैं सासादनवाला एकेंद्रियवि नाही उपजै, तिनिके मतकी अपेक्षा बारह भाग नांही कहै हैं । अर सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोककै असंख्यातवां भाग स्पर्श है । पीतलेश्यावाला मिथ्यादृष्टि सासादनसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवां भाग अर चौदह भागमैसूं आठ भाग नव भाग देशोन स्पर्शे है । सम्यमिथ्यादृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि लोकका असंख्यातवा भाग अर चोदह भागमैतूं आठ भाग देशोन स्पर्श है । संयतासंयत लोकका असंख्यातवा भाग अर मारणांतिक अपेक्षा प्रथमस्वर्गका ब्योढ राजूताई स्पर्शे । तातें अद्यर्धदेशोन चौदह भागमेंसू | For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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