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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पं० स ०. संबो ( ६६ ) रज्जू - रज्जू हितो, रज्जू सुतो रज्जू सु हे रज्जू इसी प्रकार घेणु (गाय) तण, आदि के भी शब्द रूप चलेंगे । www.kobatirth.org प० बी त० च०, छ० पं० - ܕܙ अकारान्त स्त्रीलिंग 'सासू' (सास) शब्द विभक्तियाँ एकवचन रज्जुं सासू सासु सासून वणं धणं फलं " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 17 17 सासुसु स० हे सासु हे सासू संवो० इसी प्रकार बहू, चमू (सेना), आदि के भी शब्द रूप चलेंगे । प्राकृत में नपुंसक लिंग रूप प्रायः नहीं मिलते। कहींकहीं यदि मिलते भी हैं, तो उनके रूपो में प्रथमा विभक्ति के एकवचन में अनुस्वार एवं बहुवचन में इं जोड़ दिया जाता है, बाकी के शब्द - रूप पुल्लिंग अथवा स्त्रीलिंग के समान ही चलते हैं । जैसे :- वर्ण आदि शब्दों के रूप । यथा: I विभक्तियाँ पढमा एकवचन बहुवचन वाइँ धणाईं फलाई बहुवचन " सामूहि सासूणं - सासूहितो, सासूसुतो सासू For Private and Personal Use Only शेष शब्द रूप पुल्लिंग: के समान
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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