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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८ ) प्रत्यय के पूर्व 'प्राण' जोड़ा जाता है। जैसे : आइरिय + आण+ई-आयरिया (प्राचार्याणी) उवज्झाय+पाण+ई =उवज्झायाणी (उपाध्यायानी) किन्तु जब कोई महिला स्वयं ही उपाध्याय अथवा प्राचार्य (Teacher) हो तब उसमें 'मा' प्रत्यय होता है। जैसे :-उवज्झाय + आ-उवज्झाया आयरिय+पापायरिया (च) आर्य एवं क्षत्रिय शब्दों को स्त्री वाची बनाने में 'ई' प्रत्यय एवं 'प्राण' विकल्प से होते हैं। जैसे : - अय्या-अय्याणी; खत्तिया-खत्तियाणी, (छ) शारीरिक अवयवों-मुख, केश, नासिका, उदर, जंघा, दन्त, कर्ण, शृग, नख, में 'ई' प्रत्यय विकल्प से जुड़ता है। जब वह नहीं जुड़ेगा तब 'आ' प्रत्यय जटेगा। जैसे :चंदमुही-चंदमुहा; सुएसा-सुएसी, तुगसासिइ-तुगनासिया, दीहोअरी-दीहोपरा, वज्जजंघिइ-वज्जजंघिया, वज्जदंतिइ-वज्जदंतिया, दीघकण्णिइ-दीहकण्णिा , लंवसिंगइ-लंबसिंगिया, वज्जणही-वज्जणहा, आदि। . अजातिवाचक शब्दों में अकारान्त पुल्लिग शब्दों को स्त्री-वाचक बनाने के लिए विकल्प से 'इ' प्रत्यय जुटता है। जैसे :नीली-नीला, काली-काला, हसमाणी-हसमाणा, इमीणं इमाणं आदि । (झ) धर्म-विधि से विवाहित महिला के लिए पाणिग्रहण For Private and Personal Use Only
SR No.020659
Book TitleSaral Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherPrachya Bharati Prakashan
Publication Year1990
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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