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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir युगप्रधानश्रीपार्थचंद्रसूरीश्वरदादानो छंद। (गिरिवर दरिसन विरला पावे-ए देशी ) थुम अनोपम पगलां सुंदर, रूप मनोहर महिमा मंदिर । चरणकमल बंदु आणंदा, धन धन श्रीपार्श्वचंद्रमृरीन्दा।च०१ वेलग पिता विमलादे माता, प्रागवंश गुरु जगत विख्याता। च०। साधुरतनगुरुशिष्यशिरोमणि, गच्छपतिवडतपगच्छनभोमणि पंच महावत पंचाचारा, षटकाय जीव प्रतिपालनहारा । च० मोह मदन भड वैरिजिता, पंचइंद्रियजित वदीता ।। च० ॥३ चिहुं प्रकारे धर्म प्रकाशे, उत्तम भवियण चित्त विकासे । च० गुणसागरप्रतिबोधदिवाकर, सौम्यकलागुणे जित निशाकर ॥ ४ आगम निरवद्य मधुरी वाचा, बोधिबीज गुणदायक साचा।च० करणी साची ने बुद्धि साची, प्रगटी धर्मसामग्री जाची।च०५ निर्मल शिवपद मारग साधे, शुद्धी जिनवर आण आराधेच श्रीपाश्र्धचंद्रसरि संकट चूरे, सकल कुशल वंछित फळ पूरे।च०६ श्रीसंघ चतुर्विध सेवा सारे, वहाण सम भवसायर तारे । च० पूज्य अचिंत्य चिंतामणि कहीये, विमलचारित्र सेवक सुख लहीये श्रीपूज्याः पार्श्वचंद्रा जिनपतिसदृशा मार्गदा मार्गसंस्था, शुद्धाचारा यतीशा व्रतसमितिरता ज्ञानदा ज्ञानवंतः । दृष्ट्वा तान् मर्त्यलोके नृपसुरमहिता वंदनार्थ सुरेंद्र,- ' राहूताः स्वर्गलोके भवभयहरणाः शांतिदा मे भवंतु ॥१॥ तुष्टिदा मे भवंतु पुष्टिदा मे भवंतु । श्रीरस्तु । For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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