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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माचार्यश्री मातृचंद्रमरि प्रथमाला पुस्तक ५३ , २५७ लीस दोषरहित आहार कल्पे । आवा प्रकारना विषयमा साधुओने बोलवानो अधिकार नथी अने जो ए बन्ने प्रकास्मां बोले तो कौनो बंध थाय माटे निरवद्यभाषा बोलनारा मुनिओ मोक्षने पामे छे. २१" बळी श्रीपश्नव्याकरणसूत्रना संवर नामना बीजा अध्ययनमा जणावेलछे के।"सद्गुरुना समीपमा सांभळीने मृषावादविरतिरूप संवरना माटे अने सांभलवाथी हेय, उपादेय वचननु तात्पर्य रुडोरीते जाणीने बोलवु जोइए, पण वेगथी-विकल्पना व्याकुलपणाथी बोलवू नहीं, त्वरित-उतावळथी बोलवु नहीं वचननी चपलताथी बोलवू नहीं, अर्थथी कडवू बोलवू नहीं. अक्षरोथी कठण बोलवू नहीं, साहसथी-विचार्या विना बोलवू नहीं, बीजाने पीडाकरनार वचन बोलवू नहीं. त्यारे केवां वचन बोलवां ते बतावे छे:-पापरहित होय, सत्य होय, हितकारी होय, मित-थोडा अक्षरवाल्छं होय, प्रतीतिने उत्पन्न करनारूं होय, शुद्ध-पूर्व कहेला वचनना दोषोए करी रहित होय, संगत-पूर्वापर विरुद्ध न होय, मणमणा अक्षरेकरी रहित होय अने पहेला बुद्धिथी सारीरीते विचाराएल होय, एवं वचन संयमी-साधुए अवसरे बोलवू, आवां सूत्रनां वचन होवाथी ते सिवाय बोलवू नहीं." बळी श्रीसूत्रकृतांगसूत्रना अग्यारमा अध्ययनने विषे जणावेलछे के:-"एज इमणां कहेल हिंसाथी निवर्तन छे ते जीवन स्वरुप तेना वधथी कर्माना बंधने जाणनार एज ज्ञानीओना ज्ञाननो परमार्थयी प्रधान सार छे. वळी For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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