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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्यश्रीभ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५३ मुं. २५१ मर्मने उघाडनारी होय अने आश्रवने करनारी होय, छेदन भेदन करनारी होय अने प्राणीओनो घात करनारी एवी सत्यभाषा पण मननी साथे विचारकरी साधु न बोले." तथा श्री सूयगडांगसूत्रनेविषे जणावेल छे के:-"क्षमादि दशभेद स्वरूप जे धर्म तेनी परूपणा प्रते शंका करे मूढताना कारणे अने पापना साधनभूत जे आरंभो ते प्रते जेमने शंका पण थती नथी, ते सद्विवेकरहीत जाणवा तेमज सत्शास्त्रना बोध रहीत जाणवा. ११ अथ अज्ञानवादिमतना कहेला कहेल क्रियावादि दर्शन एटले क्रिया के तेज प्रधान मोक्षनुं अंग छे ए प्रकारे कहेवाना स्वभाववाळा ते क्रियावादी जाणवा, तेओर्नु जे दर्शन-आगम ते क्रियावादिदर्शन जाणवू, ते क्रियावादिओ केवा छे ? ज्ञानावरण्यादिकर्मना विचारथी शुन्य अविज्ञानादिथी वृद्धिपामेला चारपकारना कर्मबन्धने इच्छता नथी. तेथीज कर्मनो चिन्तारहित तेमनुं दर्शन छे. तेने लइने संसारनी वृद्धि करनारा छे पण संसारना नाशक तेओ नथी. २४ तेज जीव अने तेज शरीर आदिने कहेनारा, गोशालकना मतने अनुसरनारा अने त्रैराशिक, ए रागद्वेषादिकथी पराभव पामेलाछे, शब्दादिविषयथी अथवा प्रबल महामोहथी उत्पन्न थएल अज्ञानथो पराभव पामेला छे, एम तुं हे शिष्य जाण! एवा ए मतना आग्रहीओ असत्य उपदेशमा प्रवत्तेला होवाथी कोइना शरणभूत अथवा रक्षाकरवामां समर्थ थइ शकता नथी, कारणके ते बालकनी For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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