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श्रीसप्तपदीशाख-गुजरातीभाषानुवाद
करी, डाबा पडखे कुकडीनी माफक पग पसारतो अन्तरमध्यनी भूमिने पुंजे. २. जंघाने संकोचता अने पाशा फेरवामां शरीरने पडिलेवे, द्रव्यादि उपयोगवालो उश्वासने रोकी विचारे. ३. जो आ मारा शरीरनो रात्रिमा प्रमादे-नाश थाय तो आहार, उपधि अने आ देहने छेल्ला शासोश्वासे वोसरावं छु. ४. एम बोली पछी चत्तारि मंगलं. अहार पापस्थानोने वोसरावधा, चोरासीखाल जीवाजोनीओने खमावनी अने बार भावनाओ भाववी जोइए. हुं एकलो छु, मारुं कोइ नथी, बीजा कोइनो पण हुं नथी, एवी रीते अदीन मनवाळो थयो थको पोताना आत्माने शिखामण आपे. १. जीव एकलो छे, अने एकलोज उत्पन्न थाय छे, एकलानो मरण थाय छे, कर्म-रज रहित थयो थको एकलो सिद्धिने वरेछे. २. ज्ञानदर्शनगुणे सहित, शाश्वतो मारो आत्मा एकलो छे. बाकीना सर्व भाव पदार्थों संयोग संबंधथी एकठा थएला छे, ते माराथी जूदा छे. ३. संयोगने लइनेज जीवे दुःखपरंपरा प्राप्त करेल छे, माटे सर्व संयोग संबन्धोने भावथी हुँ त्याग करुं छु. ४. पहेला नहीं पामेल एवा सुभाषित अमृत सरखा श्रीजिनवचनोने पामीने स्वीकारेल छे मुक्तिमार्ग जेणे एवो हुँ हवे मरणथी बीहितो नथी. १३८. बस-थावर जीवोने सुख आपनार अने निर्वाणमार्गनो रस्तो देखाडनार एवा श्रीजिनेश्वरे दर्शावेल ए सत्य उपदेशने त्रिविधे हुं सद्दहणा करुं छु. १३९. इत्यादि, ए संथारानो विधि जाणवो. श्रीआचारांगसूत्रना सिजणा
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