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आयुष्य पूर्ण करी समाधिपूर्वक आ औदारिक शरीरने छोडी स्वर्गवासी थया. परमगुरुदेवना विरहथी अनुयायीवर्गने घणो आघात थयो. पवित्र भूमिमां चंदनादि उत्तम पदार्थोथी आचार्यदेवना शरीरनो रडता हृदये सुश्रावको तरफथी अग्नि संस्कार करवामां आव्यो अने तेज स्थानके एक शिखरबंधी देहरी करवामां आवी, तेमां सूरीश्वरदेवनी पादुकानी स्थापना प्रतिष्ठा विधिपूर्वक करवामां आधी. अहाइ महोत्सव, शांतिस्नात्र विगेरे बहु धामधुमथी थया. बीजा गाम-नगरोमां पण अढाइ महोत्सवो गुरुदेवनी चरणपादुकानी स्थापनाओ, गुरुदेवनी मूर्तिनी स्थापनाओ विधिपूर्वक करवामां आवी. ते हाल पण घणे स्थाने पादुकाओ विद्यमान छ अने पूजाय पण छे तेमज परमगुरुदेवनी मूर्तिओ पण केटलाक स्थानेछे अने केटलाक स्थाने सुगुरुदेवना पवित्र नामाक्षरोना यंत्रो मकराणाना आरस पत्थरमां कोतराएला पण पूजाय छे. आ टुंक बीना जणावेल छे, विशेष जाणवानी इच्छावाळा-महानुभावोए तेओश्रीना जीवनचरित्रथी बीना जाणवी. ___ चोथो ग्रन्थ श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजराती भाषानुवाद - आ सप्तपदीशास्त्र सर्व-साधु-साध्वीओने एक सरखो रोते उपयोगी तथा स्वपर आत्महित करता थशे एम जाणी तेमज साध्वीचंदनश्री वगैरेनी खास प्रेरणाथी में पोतानो बुद्धिना अनुसारे सुगम अर्थ (भाषानुवाद) तैयार करेल छे तेमां कोई पण जग्याए सूत्रथी विरुद्ध के मूल ग्रन्थकारना आशय विरुद्ध
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