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श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजराती भाषानुषाद.
जे कारणे गाथाना चोथा पदमां कहेल के के: - यतना पूर्वक शयन करतो पापकर्म बान्धतो नथी. निद्रामां सात अथवा आठ कर्मनो बंध छे, सूत्रमां कहेल खोढुं न होय. जो साधुओने निद्रा प्रमाद करवा योग्यपणाथी उपदेश कराशे ? तो मद्य, विषय, कषाय अने विकथा पण करवा योग्यपणे केम नहि थाय ? अहिं वणी विचारणा छे, छतां पण गीतार्थो मध्यस्थपणाए सूत्रमां कहेल नीतिए जे कहे तेज प्रमाण छे, तेमां संशय के विचारणा नथी. तथा वळी श्रीसुयगडांगसूत्रना पुंडरीकाध्ययनमां कहेल के के:- " जे कंइ आ संपराड़क कर्म कराय छे, जे कर्मे करीने चारे गतिमां जीव रखडे, ते सांपरायिक कर्म कहेवाय, ते कर्मने पोते करतो नथी, बीजाओनी पासे कराक्तो नथी अने बीजा करतां होय तेने सारुं जाणतो नथी, ते साधु जाणवो. " आवुं सूत्र वचन होवाथी, सांपरायिक कर्मनो निषेध साधुओने उपदेशेल छे. निद्रामां तो सांपरायिक कर्मज थाय छे, अने शयनमां तेनी भजना छे. तथा श्री महानिशीथसूत्रमां कहेल ले के :- " दिवसे शयन कर नहीं, करे तो 'दुवालस' प्रायश्चित्त आवे." अहिं दिवसे सुवानो पण निषेध करेल छे, तो निद्राना माटे शुं कहेतुं ? राते तो कारणे संथारा करवानो विधि छे, त्यां सूवानी यतना बतावेल छे. अहिं गीतार्थोज साक्षीओ थइ जे कहे तेज प्रमाण छे. निद्रा विधिनो उपदेश जिनेश्वर तथा छद्मस्थोना कथित उपर बतावे सूत्र तथा तेओनी वृत्तिओमां नथी. तो निद्रा
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