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श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद.
मुहर्तमात्र पण प्रमाद न करीश." वळो श्रीआचारांगसूत्रना लोकविजय अध्ययनना चोथा उद्देशाने विषे जणावेल छे के:"बारीक बुद्धिवाळा विद्वान् साधुने पांचे प्रमाद करवाथी सयु, कारणके प्रमादथीज जीवे अनंता मरणो कर्या," इत्यादि. वळी तेज सूत्रना तेज अध्ययनना छठा उद्देशामा जणावेल छे के:-"पोते जाते करेल मद्यादि प्रमाद बडे जीव व्रतोथी रहीत थाय छे, अथवा प्रमाद सेवन करवाथी फेर संसारनी वृद्धि करनार थाय छे." बळी श्रीआचारांगमूत्रना त्रिजा अध्ययनमा जणावेल छे के:-"अज्ञानी होय ते मृतेला जाणवा अने ज्ञानी मुनिओ सदा-निरंतर जागता रहे छे. हे नरो ! सदा जागता रहो, जागता रहेनारनी बुद्धि वृद्धि पामे छे, जे सूए छे, ते भाग्यशाळो न जाणयो, अने जे जागे छ ते सदा भाग्यशाळी जाणवो. १. प्रमादीनुं श्रुतज्ञान सूइ जाय, अथवा तेनुं श्रुतज्ञान शंकाबाळं अने स्खलना पामनाएं थाय छे, अने अप्रमादी तेमज जागतानु श्रुतज्ञान स्थिर अने अस्वलित थाय छे. २. ज्यां आलस होय त्यां सुख न होय, ज्यां निद्रा होय त्यां विद्या न होय, ज्यां पांचे प्रमाद होय त्यां वैराग्य न होय अने ज्यां आरंभ होय त्यां दयालुता न होय. ३. धर्मि पुरुषोनी जागरिका श्रेयस्कारी छे अने अधम्मि पुरुषोनी तो निद्रालुता सारी छे, ए प्रमाणे श्रमण भगवान श्री महावीर देवे वच्छ देशना महाराजानी बहेन जयन्तीने कहेल छे. ४. अजगर भूत थइने जे सुए छे, ते अमृतभूत श्रुत
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