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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ श्रीसप्तपदीशाख-गुजरातीभाषानुवाद. करे. १०६ थी ११०. हवे रात्रिनो त्रिजो पहोर आव्ये छते त्रिजी पोरसीमां श्रीठाणांग सूत्रमा बतावेल धर्मजागरिकाने साधुओ करे. १११. मुनिओने रात्रिना चारे भाग--पहोर उत्तरगुणने करनारा छे. श्री उत्तराध्ययन सूत्रना छवीसमा अध्ययनमा एभ का छे के:-" रात्रिना त्रीजा भागमा निद्रानुं मोक्ष साधुओए करवू जोइए," ए तेमनी करणी छे. ११२. तेनी वृत्तिमा निद्दामुख्खो' शब्दनो अर्थ निद्रा करीने एटले पहेला पहोरने मुकीने बीजा पहोरोमां ते निद्रा करवी एम कहेल छे, ११३.जे सूत्रमा कहेल होय तेना अर्थनेज वृत्तिकार ज्यां स्मरण करावे, अथवा जणावे ते वृत्तिने सर्व कोइ तहत करीने माने छे. ११४. निश्चेशी क्यारे पण लेशमात्र पूर्वापर विपरीत सूत्र न होय, ए कारणथी निद्रा करवामां त्यां सूत्रमा विधि नथी. ११५. उत्तर गुण कहेल छे निद्रा मोक्ष अने धर्मजागरिका, एत्रणे मूत्रना पदो छे तेओनो अर्थ निद्रा न संभवे. ११६. जो विजा पहोरमां निद्रा करवी एम अर्थ होय तो तिहां 'निद्दा' ए पद होय, तो कोइ पण संदेह न थार, पण 'मुख्खो' ए पद छते निद्रानी भजना जाणवी. ११७. 'मुख्ख' पदना अर्थो:-मोकलं करवू-छोडवू अने त्याग करवू इत्यादि बीजा पण घणा थाय छे. इहां सूत्रोमां तथा वृत्तिओमा युक्तिपूर्वक सूचन कराएलां छे.११८. अत्रे एक शब्दना पण घणा अर्थों संभवे छे. सिद्धान्तना जाणकार सिद्धान्तना उचित-योग्यज अर्थनो सम्यक् प्रकारे प्रयोग For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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