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श्री सप्तपदीशास्त्र-गुजराती भाषानुषाद.
वचन होवाथी. आ वचनयो विरुद्ध देखाय छे. तेथी बे मतांतर मां श्रुतानुसारी एकनुंज वचन होय, एम जाणवु, अने तेज वचन प्रमाण जाणवुं. ९८. अहिं श्रीभगवती सूत्रनी वृत्तिमां जे प्रथम कहेल छे के जे मत आगमानुसारी होय तेज प्रमाण कारण के केवली भगवानोनुं मत एकज होय छे. श्री आवश्यक निर्युक्तिना चोथा अध्ययनमां एक गाथा आपेल छे, तेमां जणावे छे के चार वांदणा प्रतिक्रमणमां अने त्रण वांदणा सज्झायमा एम पूर्वाह्न अने अपराह्नना मली चौउद वांदणा थाय छे. जेणे चौउद वांदणा कथा तेणे तंत्रीस वांदणाने सूचन करनारा ग्रन्थो अमान्य राख्या के नहिं ? ते विचा खुं जोइए. पाउसिय अने अढरत ए वे काळ अदृरत्तमां छे अने वेरतिय ए त्रिजो अथवा प्राभातिक विजो, अने अहिं प्राभातिक चोथो, एम चार काळने विषे जो दरेकना त्रण aण वांदा अने दरेक सज्झायना एटलाज ऋण ऋण वांदणा अने बे प्रतिक्रमणना आठ अने सांजना पच्चख्खाण करती वेळा एक वांदणुं, ए सर्व मेलवीए त्यारे तंत्रीस वांदणा अहिं थाय छे. हवे क्यां तेंत्रीस अने क्यां दिवस - रात्रिमां चौउद, आ मोडुं आंत प्रत्यक्ष अहिं आ प्रकारे देखाय के. पछी तो जे पक्षपातरहितपणें गीतार्थी सारी रोते विचारीने प्रवचनेकरी शुद्ध सम्यक् प्रकारे प्ररूपे तेज निश्श्रेथी मने प्रमाण छे. ९९ थी १०३. वणा सूत्रोमां तेमज घणी वृत्ति अने चूर्णिओमां प्रणवदा कहेलां छे, तेने अप्रमाण केम कराय ?
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