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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० श्रीसप्तपदीशास्त्र-गुजरातीभाषानुवाद. खमासमण देइने "इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् पडिलेहणं संदिस्सावेमि, इच्छं.” तथा फेर खमासमणो देइने " इज्छाकारेण संदिस्सह भगवन् पडिलेहणं करेमि" एम बोली विधिपूर्वक मुहपत्तिनी २५ पडिलेहणा होनाधिक विना करवी अने पच्चीस पडिलेहणा शरीरनी करवी. पादपोंच्छन, रजोहरण, निसिद्या अने खोमीइय एटलावानानी पडिलेहणा प्रथम आदेशे करवी. ४०-४१ पछी बळी गुरुओनी पासे बे खमासण दइ विधिपूर्वक अंग पडिलेहण करे, तेमां चोलपट्टानी पचीस करे. ४२ बळी गुरुओनी भक्ति अथै एक खमासमण दइ बोले " इच्छा कारेण संदिस्सह भगवन् पडिलेहणा पडिलेडावाजी" एम आदेश मागी मुनि मंडलीमा मोटा होय ते स्थापनाचार्यनी यतनापूर्वक पडिलेहणा करे अने बीजा अनुक्रमे गुरुओना विनयने करे एटले नाना मोटाना वस्त्रनी पडिलेहणा करे. ४३-४४ पछी बेखमासमण आपीने दंडपर्यन्त सर्व उपधिने पडिलेहोने फेर एक खमासमण आपीने " इच्छाकारेण संदिस्सह भगवन् ! वसहिं पमजमि" एम बोली शुद्ध यतना पूर्वक कोमल दंडासणथी वसतिनी प्रमार्जना करे, काजो ले, त्रीजो अंग श्री ठाणांग, तेना पांचमां ठाणामां काजो लेवाना पुच्छणा पांच प्रकारना बतावेला छे, तेमांनां कोईथी मुहपत्तिथी मुखढांकीने, रज उडी नाक अने मुखमां न पेसे एवी रीते मुनिओ वसतिने पुंजे. ४५ थी ४७ काजाने तपासी, षट्पदी विगेरे जीवोने उद्धरी, सुगुरुना वचनथो For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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