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के जेथी सामान्य बुद्धिवाळा साधु मुनिराजो पण ते वांची भव्यात्माओने संभळावा समर्थ थया, अने श्रावको पण केटलाक सांभळी आगमवाणीना जाणकार थवा लाग्या के जेथी आगममां साधुमार्ग शुं बतावेल छे अने हालमां साधुओ एम केम चाले छे, ए बीना जाणवामां आवी, तेथी शिथिलाचार्यों परथी धर्मप्रेमनी वृत्तिओ तेओनी ओछी थवा लागी अने शिथिलाचारिने शुद्ध रूपक तरफ द्वेष उत्पन्न थयो. आ पवित्र आचार्यने जोइ बीजा गच्छोमां पण जागृति आत्री, सूत्रमार्गनी प्रवृत्ति तरफ आकर्षाया अने केटलाकोए क्रिया उद्धार करी शिथिलाचारने छोड्यो जोके सात पेढी सरखी तो कोइनी चालती नथी तोपण तरतमां आ मोटामां मोटो लाभ आचार्यश्री पार्श्व चंद्रसूरिजीए ने समयमां मेळवेल हे ते समयमा सर्वने जाग्रत करनार आ पवित्र आत्मा हता. aft and भव्यात्माओना उद्धारने माटे अनेक ग्रन्थ, प्रकरण, कुलक, सज्झाय, स्तवन, चर्चाओ, पटो अने विचारो वगेरेनी रचना करी लख्या छे. मारवाड जोधपुर पट्टीमां वसनारा मुणोतगोत्रीय रजपुताने महाराजा मालदेनी संमतिथी जैन धर्मी श्रावको बनाव्या. जे मुणोतगोत्रीय श्रावको हालमां पण मारवाडमां विद्यमान छे. रजपुतोने जैनधर्मी श्रावक बनावनारा आ छेल्ला आचार्य थया छे. मालवामां घणा श्रावकोने शुद्ध धर्ममां जोड्या. नवसे चंडाळोने समजावी चंडालकर्मथी मुक्त कराव्या. उनावा गाममां महेसरी वाणीआओने उपदेश आपी
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