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समयप्ररुपणातिरस्करण समालोक्य श्रीजिनाज्ञापालनवितन्द्रेण श्रीअष्टापदतीर्थाधिपतिश्रीजिननामस्मरणसंजातभद्रेण सरि पार्श्वचन्द्रेण पत्रमिदमलेखि, यात्रिकानेकदेशायातविवेकिलोकः श्रीपत्तननगरनिवासिभिजिनाज्ञावासितचित्तैर्जनश्च वाच्यमानं चिरं नन्द्यात् ॥"
त्रीजो ग्रन्थ " श्री स्थापनापश्चाशिकाप्रकरण' जेमां स्थापना संबंधी विना सूत्र--सिद्धान्तना पुरावा बताववा पूर्वक जणावेल छे, " श्री जिनप्रतिमा जिन सारखी" ए वस्तु शास्त्रानुसारे सिद्ध करो लोंकाना मतने अनुसरनाराओने शुद्ध श्रद्धावाळा करवा युक्तिपुरःसर समजाववा माटे आचार्य वयें आ ग्रन्थनी रचना करी छे. आ "श्रीस्थापनापंचाशिका प्रकरण" बारीक अक्षरथी लखाएल एकज पत्रमा संपूर्ण हतो, तेनुं लखाण शुद्ध पण अक्षरो केटलीक लेनोमां घसाइ गएला अने बहुजीणा हता. पत्र पण जीर्ण-विशीर्ण जेवो थड़ गएल हतो. बनता प्रयत्ने विचारपूर्वक ते परथी सुधारो प्रेसकोपी करवामां आवेल हती. तेना अन्तभागमा पुष्पिका आ प्रमाणे लखेलछे. “इति श्रीस्थापनापंचाशिका संपूर्णा ॥ संवत् १५७४ वर्षे ज्येष्ठमासे चतुर्थी तिथौ शनिवासरे लिखिता मूरि पार्श्वचन्द्रेण सा० नाडुपुत्र सा० सधारण पठनार्थम् ।। श्रीः॥" आ स्थापनापंचाशिकाप्रकरण आचार्यश्रीए वि० सं० १५७४ मां बनावेल छे तेज बीना प्रकरणना अन्तमा आप्रकारे जणावेल है:
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