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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५० मुं. ८७ (तथा च श्री महानिशीथे "संते बलबीरिय-पुरिसकारपरकमे अट्ठमी-चउद्दसी-नाणपंचमी-पजोसषणा-चाउम्मासिप चउथ्थ-छट्ठमट्टमेणं करेजा खषणमिति । अत्र चातुर्मासिकापरा न कार्यामाषसी पूर्णिमा वा गृहीतायदि तयो-ग्रहण मभविष्यत्तदा चतुर्दश्यां चतुर्थ-भक्तोपदेशो नाभविष्यदिति) ( आ बीना पानानी कांबीमां छे) मूल-कत्तिय अमावसाए, निवाणं वीरजिण-वरिंदस्स । संजायं तेण तया, पट्टवियं पोसहं सुद्धं ॥१७९।। कासीकोसल-जणवय,-निवेहि अट्ठारसेहिं मिलिऊणं । गणरायेहि पक्खिय,-ममावासाए कउ तत्तो ॥१८०॥ भणियमिणं सुहवयणं, दसामुयस्कंध-अट्ठमज्झयणे । ___ पुणरवि तथ्थेव सुया, पक्खियारोवणा भणिया ॥१८॥ तग्गहणं पडिसुद्धं, अमावसाए न पक्खियं होइ । तेण य अमावसाए, न पुनिमाएवि नेयव्वं ॥१८२॥ जम्हा पंचम-अंगे, पनरसमसयंमि वीरनाहस्स । पडिक्यदिवस-विहारो, चाउम्मासो य पढमदिणे।।१८३॥ तिन्नेव य चउम्मासा, नायव्या पुनिमाइ तत्तो य। पक्खिय-चाउम्मासा, न एगदिवसंमि जायंति ।।१८४॥ अंगंमि उवंगंमिय, चउद्दसी अहमी य उद्दिवा । तह पुनिमा य एवं, चउपव्वतिहीण नामाई ॥१८५॥ बीयसूयगडंगे, वित्ती तेवीसमेए अज्झयणे । अट्ठमि-चउद्दसीउ, पयडथ्याउ य नायव्वा ॥१८६॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020656
Book TitleSaptapadi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarchandrasuri
PublisherMandal Sangh
Publication Year1940
Total Pages291
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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