________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य श्री भ्रातृचंद्रसूरि ग्रन्थमाळा पुस्तक ५० मुं. ८५
rrrrrrrrrr
पुनरुत्तदोसाऊ ॥१॥” इतिवचनात् । पंचमु प्रतिक्रमणेसु अतिचारचिंतनमस्त्येव ॥ मूल-इय निज्जुत्ति बलेण, पक्ख-चउम्मास-वरिस-पडिकमणं।
देवसियं च करिजइ, उस्सग्गा जीयकप्पाओ ॥१६९॥ दिवसे सयमूसासा, राईए तेय हुंति पन्नासं ।
पक्रोमिय तिभिसया, चाउम्मासंपि पंचसया ॥१७॥ अ(हाहि)हडिय सहस्स मेगं, ऊसासा तहय वरिसए चेव ।
आवस्सयस्स एवं, निज्जुत्तीए य नायव्वं ।।१७१।। नवि अन्नो कोइ विही, पक्खियमाईण दीसई स
वित्तीसु य जो भणिओ,सोवि न गच्छेसु सव्वेसु ॥१७२।। नियनियगच्छायरणा, सव्वेसि अथ्यि पुबसूरिकया।
सायरणावि य आणा, जा पवयणमग्गमणुलग्गा ॥१७३॥
अथ पाक्षिकाधिकाराचित्तसमाहोठाणा, दस य दसाखंधमुत्तपन्नत्ता।
पक्खिय-पोसहिएमु य समाहिपत्ताण साहणं ॥१७४॥
अत्रचूर्णि:-"पक्खियमेव पक्खियं पक्खिए पोसहो अहमि चउद्दसीसु समाहिपत्ताणं समाही-नाण-दसण-चरणरूवा भावसमाही तथ्य पत्ता" । इत्यादिवचनात् ।। मूल-अथ्थय पक्खिय-सद्दो, चउद्दसी-वायगो मुणेययो ।
जं पक्विय परियाओ, एसो नहु पुन्निमा भणिया॥१७५।। भुजो भगवइ-अंगे, पढमुद्देसे य बारस-सयंमि । पक्वियपोसह-सद्दे, चउद्दसी-संभवो अथि ।।१७६॥
For Private And Personal Use Only