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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चानेकान्तवादे तादृशछललक्षणस्य प्रसक्तिरेव नास्ति, अभिप्रायान्तरेण प्रयुक्तस्य शब्दस्यार्थान्तरपरिकल्पनाभावात् ॥ प्रश्नः- अनेकान्तवाद छलमात्र है । क्योंकि अनेकान्तवादमें वही पदार्थ है, वही नहीं है, वही नित्य है तथा वही अनित्य भी है, इत्यादि विषयका निरूपण है ? यह शङ्का नहीं कर सकते । अनेकान्त वादमें छलका लक्षण नहीं घट सकता । अन्य अभिप्रायसे कहेहुये शब्दका अन्य अर्थ कल्पना करके दूषण देना छल है; यही छल सामान्यका लक्षण है । जैसे “नव कम्बलोऽयम् देवदत्तः" नव अर्थात् नूतन कंबल युक्त देवदत्त है, इस वाक्यमें नूतन कंबल युक्त इस अभिप्रायसे कथित 'नव' शब्दकी अन्य अर्थमें कल्पना करके कोई दूषण देता है कि इस पुरुषके नौ (९) कंबल कहां हैं, क्योंकि यह दरिद्री है, इसके तो दो २ कम्बलकी भी संभावना नहीं है. और नौ (९) कम्बल कहांसे हो सक्ते हैं । और इस अनेकान्त वादमें उस प्रकारके छलके लक्षणकी प्राप्ति भी नहीं है । क्योंकि अन्य अभिप्रायसे प्रयुक्त शब्दकी अन्य अर्थमें कल्पनाका अभाव है। अथ संशयहेतुरनेकान्तवादः, एकस्मिन्वस्तुनि विरुद्धानामस्तित्वनास्तित्वादिधर्माणामसम्भवात् ; एकवस्तुविशेष्यकविरुद्धनानाधर्मप्रकारकज्ञानं हि संशयः । यथा-स्थाणुर्वा न वेत्याकारकज्ञानं एकर्मिविशेष्यकस्थाणुत्वतदभावप्रकारकज्ञानत्वात्संशयः । तथा चास्तित्वनास्तित्वादिरूपविरुद्धनानाधर्मप्रकारकघटादिरूपैकवस्तुविशेष्यकज्ञानजनकत्वात्संशयहेतुरनेकान्तवादः । इति चेन्न-विशेषलक्षणोपलब्धेः । संशयो हि सामान्यप्रत्यक्षाद्विशेषाप्रत्यक्षाद्विशेषस्मृतेश्च जायते यथा स्थाणुपुरुषोचिते देशे नातिप्रकाशान्धकारकलुषायां वेलायामूर्ध्वमात्रंसामान्यं पश्यतः, वक्रकोटरपक्षिनीडादीन् स्थाणुगतान्विशेषान्वस्त्रसंयमनशिरःकण्डूयनशिखाबन्धनादीन्पुरुषगतांश्चानुपलभमानस्य तेषां च स्मरतः पुरुषस्यायं स्थाणुर्वा पुरुषो वेति संशय उपपद्यते । अनेकान्तवादे च विशेषोपलब्धिरप्रतिहतैव, स्वरूपपररूपादिविशेषाणां प्रत्यर्थमुपलम्भात् । तस्माद्विशेषोपलब्धेरनेकान्तवादो न संशयहेतुः। - अब कदाचित् यह कहो कि, अनेकान्तवाद संशयका हेतु है । क्योंकि एक ही वस्तुमें विरुद्ध अस्तित्व तथा नास्तित्व आदि धर्म संभव नहीं हैं । जैसे यह सम्मुख स्थित पदार्थ स्थाणु है या नहीं यह ज्ञान एक पदार्थ विशेष्यक तथा स्थाणुत्व तथा उसके अभाव विशेषणक होनेसे संशय है. इसी रीतिसे अस्तित्व नास्तित्व आदिरूप विरुद्ध नाना धर्म विशेषणयुक्त घट आदि पदार्थ विशेष्यक ज्ञानका जनक होनेसे अनेकान्त वाद संशयका हेतु है ? यह शंका भी नही कर सकते । क्योंकि संशयके विशेष लक्षणकी उपलब्धि है। सामान्य अंशके प्रत्यक्ष, विशेष अंशके अप्रत्यक्ष और विशेषकी स्मृति होनेसे संशय होता है। जैसे स्थाणु तथा पुरुषकी स्थितिके योग्य देशमें और न अति प्रकाश न अति अन्धकारसहित वेला ऊर्ध्वता सामान्यके देखनेवाले और स्थाणुमें रहने १ नव इस शब्दका भेद अर्थ नूतन तथा ९ संख्या भी है. For Private And Personal Use Only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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