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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वक्तव्यत्वाभावरूपधर्मावच्छिन्नं वस्तु प्रतीयते, न तु सत्त्वासत्त्वादिरूपानेकधर्मावच्छिन्नं वस्त्विति सर्वानुभवसाक्षिकमेतत् । __ यदि ऐसा कहो कि अन्य जो संकेत सिद्ध पद है उसको क्रमसे ही सत्त्व असत्त्व धर्मसे अवच्छिन्न वस्तुकी बोधकता है, तो अन्य पदके समान अवक्तव्य इस पदकोभी एक कालमें ही सत्त्व तथा असत्त्व धर्मसे अवच्छिन्न वस्तुकी बोधकता नहीं हो सकती, जैसे अन्य सांकेतिक पदसे सत्त्व तथा असत्त्व धर्म सहित पदार्थका ज्ञान क्रमसे ही होता है, ऐसे ही अवक्तव्य इस पदसे भी क्रमसे उसका ज्ञान होता है । क्योंकि जब दोनों संकेत सिद्ध हैं तब एकमें कोई विशेषता नहीं है, किन्तु अवक्तव्य इस पदसे वक्तव्यत्वका अभावरूप जो धर्म है उस वक्तव्यत्वाऽभावरूप धर्म सहित पदार्थ भासता है, न कि सत्त्व असत्त्व इन उभय धर्म सहित पदार्थ । इस विषयमें सब विद्वानोंका अनुभव ही साक्षी है । अथैवम्अव इस विषयमें यदि यह कहो"उक्तिश्चावाच्यतैकान्तेनावाच्यमिति युज्यते ।" "अवाच्यताका जो कथन है वह एकान्तरूपसे अकथनीय है ऐसा माननेसे अवाच्यता युक्त न होगी ॥ इति स्वामिसमन्तभद्राचार्यवचनं कथं संघटते ? सत्त्वासत्त्वविशिष्टस्य वस्तुनस्सर्वथाsवाच्यत्वे तस्था वाच्यशब्देनापि वाच्यत्वं न स्यादिति तत्र प्रतिपादनात्, इति चेन्न; तदर्थापरिज्ञानात् । अयं खलु तदर्थः, सत्त्वाद्येकैकधर्ममुखेन वाच्यमेव वस्तु युगपत्प्रधानभूतसत्त्वासत्त्वोभयधर्मावच्छिन्नत्वेनावाच्यम्, तादृशवस्तुनः सत्त्वाद्येकधर्ममुखेनाप्यवाच्यत्वे वाच्यत्वाभावधर्ममुखेनावाच्यशब्देनापि वाच्यत्वं न स्यादिति । एतादृशव्याख्यामपहाय सत्त्वासत्त्वोभयरूपेणावाच्यं वस्तु तादृशरूपेणैवावाच्यशब्देन वाच्यं भवतीति व्याख्याने येन रूपेणावाच्यं वस्तु तेनैव रूपेण वाच्यं प्राप्तमिति येन रूपेण सत्त्वं तेनैव रूपेणासत्त्वमप्यंगीक्रियताम् । तथा च यह श्रीखामी समन्तभद्राचार्यका कथन कैसे संगत होगा, क्योंकि आचार्यके इस वचन कहनेका तात्पर्य यही है, कि यदि सत्त्व असत्त्व धर्म सहित वस्तुको सर्वथा आवाच्य मानोगे तो वह 'अवक्तव्य इस पदसे भी नहीं कही जा सकती, क्योंकि जब सर्वथा अकथनीय है तब किसी पदसे भी नहीं कही जासकती ? ऐसी शंका भी नहीं कर सकते, क्योंकि तुमने खामी समन्तभद्राचार्यजीके वचनका अर्थ नहीं समझा, उस वचनका निश्चयरूपसे अर्थ यह है कि सत्त्व आदि धोंमेंसे किसी एक धर्मके द्वारा जो पदार्थ वाच्य है अर्थात् कहनेके योग्य है, वही पदार्थ प्रधानभूत सत्त्व असत्त्व १ पदार्थके खरूपको जनाने अथवा कहनेके लिये शब्दमें शक्ति अथवा वाचकता. २ संकेतसे सिद्ध. ३जो कहा नहीं जाय. For Private And Personal use only
SR No.020654
Book TitleSaptabhangi Tarangini
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVimaldas, Pandit Thakurprasad Sharma
PublisherNirnaysagar Yantralaya Mumbai
Publication Year
Total Pages98
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size57 MB
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